________________ द्वितीय अध्याय - ज्ञानमीमांसा : सामान्य परिचय [99] का) उपघात करता है, उसी तरह शुभ पुद्गल समूह के चिन्तन की प्रवृत्ति से द्रव्यमन हर्षादि उत्पन्न कर औषधि के समान जीवात्मा का अनुग्रह करता है। इसका आशय यह है कि जीवात्मा पर इन उपघात और अनुग्रह को द्रव्यमन ही करता है, किन्तु चिन्तन के विषयभूत पदार्थ अर्थात् ज्ञेय विषय मन का किसी भी प्रकार से अनुग्रह और उपघात नहीं करते हैं। जैसेकि इष्ट और अनिष्ट पुद्गलों से निर्मित आहार आदि अपने स्वभाव के अनुसार जीवों के शरीर की पुष्टि या हानि करता है, वैसे ही द्रव्य मन भी पुद्गलमय होने से जीवों के शरीर की पुष्टि और हानि करे तो इसमें कोई बाधा नहीं है। इस प्रकार ज्ञेय विषय से द्रव्यमन का न तो अनुग्रह होता है और न ही उपघात होता है अर्थात् दोनों ही नहीं होते हैं। पुद्गलों के द्वारा जीव का अनुग्रह या उपघात होना युक्तियुक्त ही है, अर्थात् इष्टअनिष्ट, शब्द, रूप आदि में अनुग्रह-उपघात का होना देखा ही जाता है इसलिए हमने इसका निषेध नहीं किया है। 5. पूर्वपक्ष - जागृत अवस्था में भले ही मन अपने ज्ञेय विषय को प्राप्त (स्पृष्ट) नहीं करे, किन्तु सुप्त अवस्था में तो विषय से स्पृष्ट हो सकता है, जैसे कि मेरु शिखर पर मेरा मन गया था, ऐसा अनुभव सोये हुए लोगो को होता ही है। उत्तरपक्ष - जिनभद्रगणि कहते हैं कि स्वप्न में वस्तुतः जैसा दिखाई देता है, वैसा नहीं होता है, क्योकि जो दिखाई पड़ता है, उस स्वरूप का अभाव होता है। इस अभाव के कारण वह (स्वप्न देखने वाला) मन से ही नहीं, अपितु अपने शरीर से भी वहाँ गया हुआ स्वप्न में देखता है, और वहाँ जाने से होने वाले उपघात और अनुग्रह का सद्भाव स्वप्न टूटने या निद्रा से जागृत होने पर नहीं होता है 02 साथ ही स्वप्न में हुई भोजनादि क्रियाओं से होने वाली तृप्ति, स्वप्न आदि में मदिरा पान आदि का नशा, स्वप्न में शत्रु द्वारा वध, बन्ध आदि परिणामों का जागने पर सद्भाव नहीं होता है। 6. पूर्वपक्ष - स्वप्न में कामी पुरुष की कामीजनों के साथ हुई रति क्रिया के कारण किसीकिसी व्यक्ति के निद्रा से जागृत होने पर वीर्य आदि का क्षरण प्रत्यक्ष दिखाई देता है, उससे ऐसा अनुमान किया जाता है कि स्वप्न में किसी स्त्री के साथ संगम क्रिया हुई है। अतः आप कैसे कहते हैं कि स्वप्न में की गई क्रियाओं का फल दृष्टिगोचर नहीं होता है। उत्तरपक्ष - जिस प्रकार जागते हुए व्यक्ति को तीव्र मोह के कारण स्त्री संसर्ग सन्बन्धी तीव्र अध्यवसाय होने से वीर्य क्षरण हो जाता है उसी प्रकार स्वप्न में भी तीव्र अध्यवसाय के कारण वीर्य का क्षरण हो जाता है और उस संयोगक्रिया में किये हुए तथा स्वप्न में अनुभूत नख-दन्त के चिह्न दिखाई नहीं देते हैं। अत: स्त्री संसर्ग के बिना भी वीर्यक्षरण होने से, वीर्य क्षरण का हेतु अनेकांतिक है। यदि आपके कहे अनुसार वीर्य-क्षरण होना आदि को स्वीकार करें तो स्वप्न में जिस स्त्री के साथ समागम हुआ है उसी से रति-सुख, गर्भाधान आदि भी होने चाहिए, किन्तु ये सब नहीं होते हैं, अतः स्वप्न में की गई रतिक्रिया विफल रहती है, अर्थात् उसका कोई परिणाम नहीं होता है।203 7. पूर्वपक्ष - स्त्यानगृद्धि निद्रा के उदय से व्यक्ति का मन स्वप्न में हाथी दांत को उखाड़ने में प्रवृत्त होता है, तब उसकी प्राप्यकारिता और व्यंजनावग्रह का होना सिद्ध ही है। उत्तरपक्ष - पूर्व में कही हुई युक्तियों से स्वप्न अवस्था में भी मन का व्यंजनावग्रह नहीं होता है, क्योंकि विषय की 201. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 219-223 202. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 224-225 203. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 226-233