________________ [88] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन दण्ड बनाना, तीसरे समय में लोक के संख्यातवें भाग में समस्त लोक को व्याप्त करने वाली भाषा का भी संख्यातवां भाग होता है और चौथे समय में सम्पूर्ण लोक व्याप्त होता है। पांच समय की व्याप्ति में पहले समय में भाषा द्रव्यों को विदिशा से दिशा में गमन, दूसरे समय में लोक के मध्य में प्रवेश, इस प्रकार दोनों व्याप्ति में भी यह ले और दूसरे समय में लोक के असंख्यातवें भाग में भाषा का असंख्यातवां भाग होता है। तीसरे समय में लोक के असंख्यातवें भाग में भाषा का असंख्यातवां भाग होता है, क्योंकि इस तीसरे समय में दण्ड होता है। चौथे समय में लोक के संख्यातवें भाग में भाषा का संख्यातवां भाग होता है और पांचवें समय में सम्पूर्ण लोक पूरित होता है। उपर्युक्त सारा कथन महाप्रयत्न वाले वक्ता के द्वारा छोडे गये द्रव्य की अपेक्षा से जानना चाहिए। मंदप्रयत्न वाले वक्ता के द्वारा छोडे हुए भाषाद्रव्य लोक के असंख्यातवें भाग में ही होते हैं, क्योंकि दण्डादि क्रम से उनका लोक में व्याप्त होना संभव नहीं है। तीन-चार-पांच समय की व्याप्ति के चरम समय में अर्थात् तीसरे-चौथे-पांचवें समय में भाषाद्रव्य सम्पूर्ण लोक में व्याप्त होने पर लोक और भाषा दोनों का भी अन्त होता है अर्थात् लोक के चरमान्त में भाषा का चरमान्त होता है।148 जिनभद्रगणि का मत - केवलिसमुद्घात के प्रथम समय में दण्ड, दूसरे समय में कपाट, तीसरे समय में मन्थान और चौथे समय में अपान्तराल पूर्ण होता है। लेकिन भाषाद्रव्य से तीन समय में ही लोक पूरित हो जाता है। चार समय के सम्बन्ध में प्राप्त मतान्तर और उनका खण्डन - उपर्युक्त वर्णन से यदि चार समय में पूरित करे तो क्या बाधा है? जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण कहते हैं कि केवलिसमुद्घात के दूसरे समय में कपाट होता है, जबकि भाषा के वर्णन में दूसरे समय में मन्थान होता है। केवलिसमुद्घात में तो भवोपग्राही कर्मों का नाश होता है, इसलिए दण्डादि का क्रम उसमें स्वभाव से ही होता है, इसलिए उसमें चार समय लगते हैं। लेकिन भाषाद्रव्य का श्रेणी में गमन और पराघात से दूसरे द्रव्यों को वासित करने के स्वभाव, ये दोनों सकल लोक की व्याप्ति में कारण हैं। इसलिये प्रथम समय में दंड, ऊर्ध्व और अध: जाता हुआ अविशेष रूप से चारों दिशाओं में शब्द के प्रयोग के लिए योग्य द्रव्यों का पराधात होता है। पराघात से अन्य द्रव्यों को वासित करने से उन भाषा द्रव्यों में दूसरे समय में वे शब्द-द्रव्य प्रसार को प्राप्त करते हैं और मन्थान को साधते हैं। तीसरे समय में उनके अन्तराल को पूरित करके सम्पूर्ण लोक को पूरित करते हैं। इसलिए तीन समय में अन्तराल आपूरित होता है, ऐसा कहा गया है। 149 शंका - प्रज्ञापना सूत्र के पांचवें पद अजीव पर्याय में अचित्त महास्कंध का वर्णन है, वह अचित पुद्गलों का स्कंध होता है। उसकी स्थिति भी चार समय की होती है। वैसे भाषा भी पुद्गलमय होने पर वह भी चार समय में लोक को पूरित करती है, इसमें क्या बाधा है? समाधान - यह योग्य नहीं है, क्योंकि अचितमहास्कंध विस्रसा परिणाम से होता है और विनसा यद्यपि विचित्र है अर्थात् अचित महास्कंध का ऐसा ही स्वभाव है। दूसरा यह कि विरसा परिणाम पराघात से दूसरे द्रव्यों में अपना परिणाम उत्पन्न नहीं करता, परन्तु अपने पुद्गलों से ही लोक को व्याप्त करता है, इसलिए वह चार समय का ही है। वहाँ पर भी जो पराघात होगा वह भी भाषा से लोक को व्याप्त करने के समान तीन समय का होगा, चार समय का नहीं। स्कंध भी विस्रसा से होता है, उसमें पराघात नहीं होता है, इसलिए वह चार समय का है। इस प्रकार भाष्यकार के मतानुसार तो तीन समय में ही भाषा के पुद्गल लोक को पूरित कर देते हैं।150 148. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 390-391 149. वही, गाथा 392-393 150. वही, गाथा 394-395