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________________ द्वितीय अध्याय - ज्ञानमीमांसा : सामान्य परिचय [87] वृद्धि प्राप्त करके छहों दिशाओं में लोकान्तपर्यन्त तक जाते हैं और पराघात द्वारा वासना विशेष से ही द्रव्य समूह में भाषा परिणाम उत्पन्न होकर तीन समय में सम्पूर्ण लोक को पूरित करते हैं। 44 मतान्तर - कुछ आचार्यों का मत है कि जिस प्रकार केवलिसमुद्घात 45 में दंडादि करते हुए चार समय में समग्र लोक पूरित होता है, उसी प्रकार भाषा के पुद्गल भी चार समय में सम्पूर्ण लोक को पूरित करते हैं। लेकिन जिनभद्रगणि के अनुसार यह एकान्त रूप से सही नहीं है। तीन समय - इसी प्रकार कुछ आचार्यों का मत है कि तीन समय में भाषा के द्रव्य लोक को पूरित करते हैं। जैसे कि लोक के मध्य में कोई महाप्रयत्न वाला वक्ता भाषा बोलता है तो प्रथम समय में ही भाषा द्रव्य छहों दिशाओं में जाते हैं। जीव और सूक्ष्म पुद्गलों की गति श्रेणी के अनुसार होती है। दूसरे समय में छहों दिशाओं में गये हुए भाग द्रव्य दंड रूप चारों दिशाओं में श्रेणी के अनुसार वासित द्रव्यों को फैलाकर छ: मन्थान रूप होते हैं। तीसरे समय में मन्थान के आन्तरों को पूरित करके समग्र लोक को पूरित करते हैं। चार समय - स्वयंभूरमण समुद्र के तटवर्ती लोकान्त में अर्थात् अलोक के अत्यन्त नजदीक रहकर बोलने वाला अथवा त्रसनाड़ी के बाहर चार दिशाओं में किसी भी दिशा में रहकर बोलने वाला भाषाद्रव्यों से चार समय में लोक को पूरित करता है। जैसेकि त्रसनाड़ी के बाहर रहकर बोले गये भाषा के द्रव्य पहले समय में त्रसनाड़ी में प्रवेश करते हैं, शेष तीन समय की प्रक्रिया उपर्युक्तानुसार जाननी चाहिए। स्वयंभूरमण समुद्र के दूसरे तट पर रहे हुए लोकान्त में चार दिशाओं में से किसी एक दिशा में वक्ता व्यवस्थित रहता है, तब दायें, बायें पीछे, ऊपर और नीचे की दिशाओं का अलोक से स्खलन होने के कारण भाषा द्रव्य प्रथम समय में लोक के मध्य में प्रवेश करते हैं। बाकी तीन समय का वर्णन उपर्युक्तानुसार है। पांच समय - त्रसनाड़ी के बाहर विदिशा में रहकर बोलेने वाला के भाषाद्रव्य से समग्र लोक पूर्ण होने में पांच समय लगते हैं। प्रथम समय में विदिशा में रहे हुए भाषा द्रव्य समश्रेणी (दिशा) में आते हैं। दूसरे समय में लोक (त्रस) नाड़ी के मध्य में आते हैं, इस प्रकार दो समय में भाषा द्रव्य लोक में प्रवेश करते हैं, इसके बाद शेष तीन समय की प्रक्रिया उपर्युक्तानुसार है। इस प्रकार पांच समय में भाषाद्रव्य लोक को पूरित करते हैं। 46 शंका - यदि ऐसा है तो फिर नियुक्तिकार ने चार समय में लोक पूरित करते हैं ऐसा क्यों कहा है। समाधान - जिनभद्रगणि इसका समाधान करते हुए कहते हैं कि जैसे तराजू के मध्य भाग का ग्रहण करने से आदि और अन्त भाग का भी ग्रहण होता है, वैसे ही चार समय रूप मध्य का ग्रहण करने से आद्यन्तवर्ती तीन और पांच सयम का भी ग्रहण हो जाता है, क्योंकि सूत्र की गति विचित्र है। सूत्र में किसी भी स्थल पर देश से ग्रहण होता है और किसी स्थल में सम्पूर्ण से ग्रहण होता है और किसी समय कारणवशात् क्रमरहित और क्रमसहित भी सूत्र में वर्णन होता है।47 तीन समय की व्याप्ति में पहले, दूसरे समय में लोक के असंख्यातवें भाग में भाषा द्रव्य का असंख्यातवां भाग पूरित होता है। तीन समय की व्याप्ति के तीसरे समय में भाषा समस्त लोक में व्याप्त होती है। चार समय की व्याप्ति में पहले समय में लोक के मध्य में प्रवेश और दूसरे समय 144. जाई भिण्णाई णिसिरति ताई अणंतगुणपरिवड्ढीए परिवड्ढमाणाई परिवड्ढमाणाई लोयंतं फुसंति। - प्रज्ञापनासूत्र पद 11, पृ. 85, विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 381-382 145. केवलिसमुद्घात का वर्णन केवलज्ञान के प्रसंग पर किया गया है। 146. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 383-387 147. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 388-389
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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