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________________ इन्द्रिय मा माग [84] विशेषावश्यकभाष्य एवं बृहद्वृत्ति के आलोक में ज्ञानमीमांसीय अध्ययन विषय परिमाण नहीं है। इन्द्रियजन्य मति-श्रुत का विषय परिमाण नियत है और इन्द्रियाँ तो पुद्गल मात्र को ही ग्रहण करती हैं, लेकिन मनोजन्य मति-श्रुत का विषय मात्र पुद्गल को ग्रहण करने में नियत नहीं है, इसलिए उसका विषय केवलज्ञान के विषय के समान है। अवधि और मनःपर्यव का भी विषय परिमाण पुद्गल मात्र से नियत रूप से बंधा हुआ दिखाई देता है।33 इन्द्रियों के विषय से सम्बन्धित चार्ट निम्न प्रकार से है - जघन्य ज्ञेय क्षेत्र उत्कृष्ट ज्ञेय क्षेत्र श्रोत्रेन्द्रिय अंगुल का असंख्यातवां भाग बारह योजन चक्षु इन्द्रिय अंगुल का संख्यातवां भाग कुछ अधिक एक लाख योजन घ्राणेन्द्रिय अंगुल का असंख्यातवां भाग नौ यौजन रसनेन्द्रिय अंगुल का असंख्यातवां भाग नौ यौजन स्पर्शनेन्द्रिय अंगुल का असंख्यातवां भाग नौ यौजन इन्द्रियाँ कब और कैसे विषय को ग्रहण करती हैं श्रोत्रेन्द्रिय प्राप्त (स्पृष्ट) शब्द को ही सुनती है, तो क्या वह शब्द प्रयोग से उत्पन्न किये हुए शब्द-द्रव्य को सुनती है, दूसरे के द्वारा वासित अथवा मिश्र शब्द सुनती है। भासासमसेढीओ, सदं जं सुणइ मीसियं सुणइ। वीसेढी पुण सई, सुणेइ णियमा पराघाए॥34 जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण इसका समाधान करते हुए कहते हैं कि जो बोली जाती है, वह भाषा है, अथवा वक्ता जिसको शब्द रूप में छोड़े वह द्रव्य समूह भाषा है। वक्ता के शरीर की दिशा से ही आकाश प्रदेश की पंक्ति रूप समश्रेणी135 भाषा की समश्रेणी कहलाती है, जो व्यक्ति समश्रेणी में रहते हुए शब्द को सुनता है, तो वह मिश्र शब्द सुनता है अर्थात् जो श्रोता छहों दिशाओं में से किसी भी दिशा में, यदि वक्ता की समश्रेणी में रहा हुआ हो, तो वह जो शब्द सुनता है, वह मिश्रित सुनता है। क्योंकि श्रोता कुछ वक्ता के द्वारा भाषा-वर्गणा के पुद्गलों को भाषा रूप में परिणत करके छोड़े गये शब्द पुद्गल सुनता है और कुछ उन भाषा परिणत शब्द पुद्गलों से प्रभावित होकर शब्द रूप में परिणत हुए शब्द पुद्गलों को सुनता है। अतः वक्ता के द्वारा जो भाषा के पुद्गल छोडे गये हैं, उनके साथ दूसरे भाषा वर्गणा के पुद्गल स्कंध मिल जाते हैं, इसलिए श्रोता मूल शब्द को नहीं सुनता, मिश्र शब्द सुनता है। यहाँ मिश्र का अर्थ है वक्ता के द्वारा छोडे हुए पुद्गल+वासित पुद्गल। लोक के मध्य में रहे हुए वक्ता के बोलने पर भाषा के पुद्गल पूर्वादि छहों दिशाओं में प्रथम समय में ही लोकान्त तक जाते हैं। जो श्रोता वक्ता की विषमश्रेणी में, किसी भी दिशा में रहा हुआ हो, तो वह जो शब्द सुनता है, वह नियम से प्रभावित शब्द ही सुनता है। वक्ता के द्वारा शब्द रूप में परिणत शब्द पुद्गल नहीं सुनता, परन्तु उसके शब्द पुद्गलों से प्रभावित होकर शब्द रूप में परिणत हुए पुद्गल ही सुनता है, क्योंकि शब्द पुद्गल समश्रेणी में ही गति करते हैं, विषमश्रेणी में गति नहीं करते, परन्तु वे विषम श्रेणी में रहे हुए शब्द पुद्गलों को प्रभावित कर, शब्द रूप में परिणत करते जाते हैं। यदि ऐसा है तो दिशा और विदिशा में रहे हुए श्रोता का अलग-अलग समय में शब्द सुनाई देना चाहिए, लेकिन सभी को एक साथ सुनाई देता है, इसका क्या कारण है? भाष्यकार कहते हैं कि दिशा और विदिशा में रहे हुए श्रोता 133. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 349-350 134. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 6, विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 351 135. आकाश प्रदेशों की पंक्ति को श्रेणी कहते हैं, यह पंक्तियां आकाश में सभी जगह होती है।
SR No.009391
Book TitleVisheshavashyakbhashya ka Maldhari Hemchandrasuri Rachit Bruhadvrutti ke Aalok me Gyanmimansiya Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPavankumar Jain
PublisherJaynarayan Vyas Vishvavidyalay
Publication Year2014
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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