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________________ नथमल के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। ____ मुनिमार्ग एक ऐसा मार्ग है जिस पर कोई संयमी या विरागी ही चल सकता है। मनसा, वाचा, कर्मणा द्वारा त्याग इसकी पहली शर्त है। यह सहज मार्ग नहीं है। बिना सांसारिक त्याग के परम सत्ता के प्रति अनुराग असम्भव है। हमारे दिव्यग्रंथ इस बात के साक्षी हैं कि परम सत्ता की ओर बढ़े कदम उम्र की सीमा में आबद्ध नहीं होते। वे कदम तो उम्रातीत होते हैं, भविष्य की चिंता नहीं होती अपितु वर्तमान ही भविष्य को स्वयं में समाहित किए रहता है। माँ ने सम्पत्ति का त्यागकर, त्याग की मिशाल कायम की। इस प्रकार मुनि नथमल अपनी माताश्री के साथ संयम पथ, आध्यात्मिक पथ के अविस्मरणीय पथिक बने। साधना के क्षेत्र में गुरू का चरमस्थान है। बिना गुरू के ज्ञान नहीं होता। गुरू ही शिष्य को अज्ञान से ज्ञान, असत् से सत् की ओर ले जाता है। जब तक गुरू की कृपा नहीं होती तब तक 'ज्ञान' व 'चैतन्य' का कपाट नहीं खुलता। गुरू तो सतत शिष्य का निर्माण करता है, उसकी आत्मा को निखारते हुए परम सत्ता का साक्षात्कार कराता है। सोते, जागते, उठते, बैठते, सद्वाणी द्वारा गुरू शिष्य को गढ़ता है, तभी तो कबीर को कहना पड़ा :-- . गुरू कुम्हार, सिख कुम्भ है, गढ़ि-गढ़ि काट्टै खोट । अन्तर हाथ पसार दै, बाहर मारै चोट ।। सौभाग्य से मुनि नथमल को दीक्षागुरू आचार्य कालूगणी की कृपा से सद्गुरू के रूप में आचार्य तुलसी की उपलब्धि हुई यानि स्वाती नक्षत्र की बूंद को 'सीप' मिल गयी। स्वनाम धन्य आचार्य तुलसी का संपूर्ण जीवनदर्शन, संयम, तप, अहिंसा तथा आध्यात्मिक स्फुरण का पर्याय रहा है। ऐसे गुरू के सानिध्य में मुनि नथमल अनुशासन, आत्मानुशासन का पाठ पढ़, उसे समग्र जीवन में आचरित कर उत्तरोत्तर विकासमान होते रहे। जैनेन्द्र ने आचार्य तुलसी की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए लिखा है कि 'आचार्य तुलसी उन महापुरूषों में हैं, जिनके व्यक्तित्व से पद कभी ऊपर नहीं हो पाता। आचार्य तुलसी इतने जीवन्त और प्राणवन्त व्यक्ति हैं कि उस आसन का गुरूत्व स्वयं फीका पड़ जाता है। वेशभूषा से वे जैनाचार्य है, किन्तु आन्तरिक निर्मलता और संवेदन क्षमता से | 791
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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