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________________ मानव दुनिया का है सुन्दरतम प्राणी। ऋ.पृ.-250. अहंकार का रोग असाध्य । ऋ.पृ.-256. कभी नाव में शकट उपस्थित, कभी शकट में होती नाव। ऋ.पृ.-260. प्रतिक्रिया से क्रिया, क्रिया से प्रतिक्रिया का नियम अमोघ । ऋ.पृ.-278. सूक्तियाँ तथ्यात्मक और उक्ति वैचित्र्य मूलक होती हैं। इन सूक्तियों के प्रयोग ने आचार्य महाप्रज्ञ की भाषा में अद्भुत व्यंजना शक्ति उत्पन्न कर दी है. जिससे उसमें चमत्कार. वाग्वैदग्ध्य और जीवन के नीति-गत प्रसंगों का सहज समावेश हो गया है। » कवि और काव्य जैन धर्म के अंतर्गत तेरा पंथ धर्म संघ के दसवें आचार्य श्रीमहाप्रज्ञ का जन्म सन् 1920 संवत् 1977 टमकोर राजस्थान में हुआ। इनके पिता का नाम श्री तोलाराम जी चोरड़िया एवम् माता का नाम बालू जी था। बचपन में वे नथमल प्यार से 'नत्थू' के नाम से पुकारे जाते थे। पिता की छत्रछाया बालक नथमल के सिर से अल्पकाल में ही उठ गई। जिस कारण परिवार की संपूर्ण जिम्मेदारी माँ के कंधों पर ही आ गई। माँ, ममता से परिपूर्ण आध्यात्मिक चेतना से संपृक्त एक श्रद्धालु महिला थी। जिस कारण बचपन से ही बालक नथमल के हृदय व मस्तिष्क में माता की करूणा, श्रद्धा, आस्था, विश्वास तथा दिव्य संस्कारों का बीजारोपण होने लगा। जिस गाँव में इनका जन्म हुआ वह गाँव शिक्षा, परिवहन की दृष्टि से पिछड़ा हुआ था। यातायात बैलगाड़ी एवं ऊंटों पर आधारित थी। सामान्य जनजीवन संघर्षमय था। बुनियादी शिक्षा का अभाव पूरे गांव के लिए एक जटिल प्रश्न था। ऐसे परिवेश में बालक नथमल उम्र के पायदान पर कदम रखते गये। यह निर्विवाद है कि जीवन में विविध सोपानों में बचपन सबसे सुखद एवं आलादक होता है। उस अवधि में मस्तिष्क और हृदय इतना पवित्र एवं निर्मल होता है कि उसमें सुसंस्कारों का बीजारोपण आचरण के द्वारा महापुरूषों की कथाओं एवम् प्रचलित 77]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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