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________________ ऊंच नीच का भेद नहीं है, सब नर एक समान। ऋ.पृ.-91. चेतना जागृत पुरूष वह, देखता परिणाम को, सुप्त मानव पुरूष केवल, देखता है काम को। ऋ.पृ.-97. दुष्कर गृह का त्याग है। ऋ.पृ.-99 तटबंधो के मध्य ही, सरिता का सौंदर्य । ऋ.पृ.-99. रोटी से बढकर क्या, है जग में शिक्षा। ऋ.पृ.-111. सत्ता के मद से कौन नहीं टकराया। ऋ.पृ.-123. शब्द का संसार सीमित, अर्थ पारावार है। ऋ.पृ.-127. तरू से मिलता है विश्वास। ऋ.पृ.-141. कर देता निर्वीय गरल को, एक सुधा का प्याला। ऋ.पृ.-165. भाग्योदय की शुभ बेला में, मिलते सभी किनारे। ऋ.पृ.-164. माँ बछड़े के पीछे चलती, माता केवल माता है। ऋ.पृ.-149. निर्झर का नूतन संदेश। ऋ.पृ.-157. खोजा उसने पाया। ऋ.पृ.-168. प्रबल प्रेरणा है स्वतंत्रता। ऋ.पृ.-171. जन्मसिद्ध अधिकार स्ववशता, परवश नहीं बनेगें। ऋ.पृ.-172. नियम-अज्ञ नर में ही पलती, आशा और निराशा। ऋ.पृ.-173. आकांक्षा का आकाश-समान मुखौटा। ऋ.पृ.-179. संग्रह सत्ता का है विग्रह का आकर। ऋ.पृ.-180. अपनी स्वतंत्रता लगती सबको प्यारी। ऋ.पृ.-180. नवनीत मिला कब पानी के मंथन से। ऋ.पृ.-181. बड़ा मत्स्य छोटी मछली से, कब करता है मन से प्यार ? ऋ.पृ.-201. यह जीवन मनुज का, सहज ही संग्राम है। ऋ.पृ.-220. 'लोभ बढ़ता लाभ से' यह, सूत्र शाश्वत सत्य है। ऋ.पृ.-229. जैसा शासक जनता भी वैसी होती। ऋ.पृ.-245. चिंतन धरती पर चलता है फलता है। ऋ.पृ.-245. अपने घर को भय उपजा अपने घर से। ऋ.पू.-249. मैत्री से पुलकित मानव ही सुंदर है। ऋ.पृ.-250. 176]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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