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________________ से अभीहित किया जाता है और किसी पद्यांश, वाक्यांश अथवा लघु वाक्य को 'सूक्ति' के रूप में माना जाता है। ये सूक्तियाँ अधिकांशतः ऐसे तथ्यों की ओर निर्देशन करती हैं, जो समाजानुरूप मानवों के सदाचरण को धोतित करने वाली होती है। ऐसी सूक्तियाँ मानवों के लिए दिशा-निर्देशन का कार्य करती हैं। योगवशिष्ठ, धम्मपद आदि में सूक्ति को महान् अर्थ सम्पन्न कहा गया है। (69) आचार्य महाप्रज्ञ ने ऋषभायण में ऐसी सूक्तियों को प्रश्रय दिया है जो जीवन के विविध पक्षों को उद्घाटित करती हुयी महत् संकेत देती है। महाकाव्य में प्रयुक्त हुई कुछ सूक्तियाँ निम्नलिखित हैं : घास, घास से दूध, दूध से दधि, दधि से बनता है तक्र। ऋ.पृ.-29. तक्र, शक्र को भी दुर्लभ है। मूल पुष्ट तो पुष्ट तना। ऋ.पृ.-37. विद्या कामदुहा धेनू है। ऋ.पृ.-66. अक्षर को गागर में सागर। ऋ.पृ.-66. शिक्षा-दीक्षा-शून्य मनुज पशु, शिक्षा है धरती का स्वर्ग। ऋ.पृ.-68. परावलंब की प्रवंचना यह, स्वावलंब ही देता साथ। ऋ.पृ.-69. डरो न, डरना मरना तुल्य, कर्मभूमि का प्राण कर्म है। ऋ.पृ.-70. मंत्र-मंत्रणा से ही होती, संचालन विधियों की खोज। ऋ.पृ.-70. निज पर शासन फिर अनुशासन, शासन का यह मौलिक मंत्र।ऋ.पृ.-72. मनुज परिस्थिति की कठपुतली। ऋ.पृ.-72. जैसा कृत वैसा बनता है, जैसा रस है वैसा स्वाद। ऋ.पृ.-72. युग का अपना-अपना मानस। ऋ.पृ.-73. बनता है अतीत इतिहास, केवल वर्तमान विश्वास । ऋ.पृ.-77. मंथन से मिलता है आज्य। ऋ.पृ.-80. बिना शांति के मानव होगा, वस्तु-वस्तु में रक्त ऋ.पृ.-81. सब कुछ पाकर भी मानव मन, रहता प्रतिपल प्यासा। ऋ.पृ.-165. शाश्वत नियम समाज में भाँति-भाँति के लोग। ऋ.पृ.-87. अजितेन्द्रिय शासक विफल, अंकहीन ज्यों शून्य। ऋ.पृ.-88.
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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