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________________ विधान की दृष्टि से आचार्य महाप्रज्ञ ने ऋषभायण में परंपरागत दोहा, सोरठा, वीर (आल्हा), गीतिका, लावनी, पद्धरि, सहनाणी आदि छंदों का प्रयोग करते हुए नवीन छंदों का सृजन किया है। 'छंद' मात्रा अथवा वर्ण व्यवस्था पर आधारित होते हैं । इनके प्रयोग से कविता की सीमा निर्धारित होती है । कविता का बाह्य सौंदर्य छंद के द्वारा बढ़ता है । लय, नाद एवं राग सौंदर्य में अभिवृद्धि का कारण छन्द होते हैं । आचार्य महाप्रज्ञ ने आवश्यकतानुरूप छंदों का प्रयोग कर काव्य को गेयता प्रदान करते हुये वैचारिक स्थापनाएँ की हैं। उनके द्वारा प्रयुक्त परम्परागत छंद नवीन भावों की सृष्टि करते हैं : दोहा : यह अर्द्धसम मात्रिक छंद है, इसके विषम चरणों ( पहले तीसरे) में 13-13 तथा समचरणो में (दूसरे, चौथे) 11-11 मात्राएँ होती हैं । विषम के आरंभ में जगण न रहे। समचरणों के अंत में गुरू लघु होना चाहिए। जैसे : SS ऽ ऽ ऽ । S SSSSSI जैसे-जैसे कार्य का होता है विस्तार SSSSS I S IISSSS I वैसे-वैसे शब्द का बढ़ता है संसार । ।। ऽ।। ।। ऽ । ऽ ऽ ।। ।। ऽ ऽ । अभिनंदन सबने किया पाकर नव नेतृत्व । ।।ऽ ऽ ।। ऽ । ऽ ISSISSI कुल संचालन में दिखा, पितृतुल्य कर्तृत्व | ऽ।। ऽ ऽ ऽ । ऽ ।।।ऽ । ऽ ऽ । जीवन शैली एक सी सहज तोष- संतोष । SSS ।।ऽ।ऽ ।।। ।ऽ।। SI आकांक्षा न महत्व की सहज मनोमय कोष । ऽ।। ऽ IIS IS 11 SS S ऽ । मंडप की रचना नहीं, न च वेदी का नाम । 70 (13+11=24) (13+11=24)
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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