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________________ » छंद गद्य व्याकरण के द्वारा शासित होता है और पद्य पिंगल या छंदो द्वारा। "छंद' शब्द का अर्थ है 'बंधन'। पद्य को रचने के लिए जिन बंधनों की आवश्यकता होती है, उसे छंद कहते हैं और जिस शास्त्र में उसका वर्णन होता है, उसे छंदशास्त्र कहते हैं। प्राचीन काल से ही कविता पद्यबद्ध होती आयी है। अतः पद्य और कविता एक दूसरे के पर्याय समझे जाते हैं। छन्द, वेदों के छह अंगों (शिक्षा, कल्प, व्याकरण निरूक्त, छंद और ज्योतिष) में माना जाता है। छन्दोबद्ध रचना कर्ण सुखद और मुख मधुर तो होती ही है। साथ ही इसे स्मरण रखने में सुगमता होती है।(83) अज्ञेय के अनुसार 'छन्द काव्य-भाषा की आँख है। सामान्य भाषा स्वयं को केवल सुनकर काम चलाती है पर काव्य भाषा स्वयं को देख भी लेती है। पाश्चात्य समीक्षक लैसल्स एबर काम्पी' 'लयात्मक आदर्श की निश्चित आवृत्ति को छंद कहते हैं । (4) काव्य में छंद सामंजस्य के पर्याय हैं बंधन या विरोध के सूचक नहीं। छंदों में बंधने पर शब्दों के स्वर एक निश्चित स्थान पर आकर बैठ जाते हैं। जिस प्रकार अनुभूति और अभिव्यक्ति एक दूसरे से अभिन्न हैं उसी प्रकार छंद को भी कविता से अलग नहीं देखा जा सकता है |(35) सुमित्रानंदन पंत के अनुसार कविता प्राणों का संगीत है तो छंद हृत्कम्पन। कविता का स्वभाव ही छंद में लयमान होता है। मुक्त कविता की अपेक्षा छंदोबद्ध एवं लयबद्ध कविता का आनंद अधिक होता है क्योंकि उसमें काव्यकला और संगीतकला दोनों ही एकरस होकर आत्मसात् हो जाती है। छंदो का प्रयोग काव्य में प्रेषणीयता को बढ़ाता है, अतः छंद काव्य भाषा का वह संरचनात्मक सहचर है, जो उसे सस्वरता में ढालकर गेय बनाता है।36) हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार छंद द्वारा साधारण बात में भी एक ऐसी गति आ जाती है, जो मनुष्य के चित्त की अनुवर्तिनी हो उठती है।37) डॉ. कदम के अनुसार :- 'छंद काव्य के प्रभाव को भावनाग्राही और संवेदनात्मक बनाता है। (38) छन्दोबद्ध कविता लयात्मक होती है। उसका नादात्मक सौंदर्य मर्मस्पर्शी होता है। उसकी 'गेयता' राग और अनुराग की रसमय वर्षा करता है। छंद 1691
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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