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________________ 'आत्मा' के आलादक रूप का साक्षात्कार होता है - साधनालीन बाहुबली को अहंकार से मुक्त करने के लिए ब्राह्मी और सुन्दरी कहती हैं :-- बंधो! उतरो, गज से उतरो, उतरो अब भूमि की मिट्टी का अनुभव होगा तब, गज आरोही प्रभु सम्मुख पहुँच न पाता, आदीश्वर, ईश्वर समतल का उद्गाता। ऋ.पृ.-294. साधना में अहंकार, मान, मद, मोह, छोटे बड़े का भेद आदि कषाय बाधक है। जब तक भाव जगत परिशुद्ध नहीं होगा, कषायों से मुक्त नहीं होगा, पूर्वाग्रह का थोड़ा भी अवशेष रहेगा, तब तक आत्मा का साक्षात्कार असंभव है। 'समत्व' दृष्टि मिल जाने पर आत्मानन्द की उपलब्धि सहज हो जाती है, दर्शन पथ स्पष्ट हो जाता है : आत्मा का दर्शन, दर्शन आदीश्वर का, साक्षात् हुआ भगिनी का, अपने घर का सब एक साथ ही दर्शन पथ में आए, मधुमास मास में कुसुम सभी विकसाए। ऋ.पृ.-296 भरत के शेष अट्ठानबे भाई पिता के प्रति विनयशीलता एवं समर्पणभाव से परिपूर्ण है। भरत की अधीनता संबंधी प्रस्ताव से वे विचलित नहीं होते। वे युद्ध करने में भी समर्थ हैं, किन्तु पिता से दिशा निर्देश आवश्यक है। भरत तो सांसारिक तृष्णा से तृषित है और यह तृष्णा ऐसी है जो व्यक्ति को भटकाती ही रहती है, कभी यह तृप्त नहीं होती। भरत के संबंध में यह कथन कितना सार्थक है जो उसे उन्मत्त किए हुए हैं :-- इतनी नदियों का जल लेकर, नहीं हुआ यह सागर तृप्त। दर्प बढ़ा है पा पराग रस, मधुकर आज हुआ है दृप्त।। ऋ.पृ.-193. जहाँ सर्मपण है वहीं भक्ति और जहाँ भक्ति है वहीं मुक्ति। ऋषभ अंगारकार के दृष्टांत से व्यक्ति की अतृप्त इच्छा की ओर संकेत कर 98 पुत्रों को विराट अलौकिक राज्य की ओर उन्मुख करते हैं-जहाँ न कोई द्वन्द्व है और 66]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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