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________________ का कारण है, किन्तु आत्मजगत् में मात्र 'समता' का व्यवहार है। 'समता' का संबंध त्याग, अहिंसा, करूणा, चरित्र आदि वृत्तियों से है। ये वृत्तियां 'आत्मा' को परमात्मा के रूप में रूपायित करती हैं। आत्मा का परिष्कृत रूप ‘परमात्मा' है जो अमूर्त है, जिसकी दिव्य अनुभूति सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन एवं सम्यक चारित्र्य से की जा सकती है, जिसकी स्थिति बाहर नहीं भीतर ही है। ऋषभ की अन्तर्यात्रा 'आत्मा' की अर्तयात्रा है, जहाँ स्थिरता है, आज़ाद है। कर्म के प्रति आसक्ति कर्म बंधन का कारण है, यह आसक्ति ही बंधन है। इस आसक्ति से मुक्ति कर्म बन्धन से मुक्ति है। 'ऋषभ' अनासक्त भाव से अपने नियत कर्म का संपादन करते हैं इसीलिए वे कर्मबंधन से मुक्त हो आत्मसाधना में लीन हुए। व्यक्ति जब तक ‘पदार्थ को ही सत्य मानता है तब तक वह आत्मा के द्वार तक नहीं पहुंच पाता। विषमताएँ उसका मार्ग अवरूद्ध कर लेती है। इस दृष्टि से 'ऋषभ' में 'पुरूषार्थ' का सांकेतिक अर्थ स्पष्ट हो जाता है। __ ऋषभायण के अन्य पात्र भी मूल अर्थ के साथ अपना सांकेतिक अर्थ देते हैं जिसमें माँ मरूदेवा कर्मबन्ध से मुक्त भक्ति का प्रतीक है। भरत ऐश्वर्य, लिप्सा एवं महत्वाकांक्षा के प्रतीक हैं। बाहुबली अहंकार, ब्राह्मी और सुन्दरी ज्ञान एवं करूणा, अट्ठानबे पुत्र विनयशीलता एवं समर्पण, कच्छ महाकच्छ एवम् साथी अस्थिर मन, नमि-विनमि लोकैषणा, लोकांतिक देव-प्रेरणा, हिमालय-तपोस्थली तथा दिव्य आयुध, विज्ञान के उत्कर्ष का प्रतीक है। उक्त प्रतीकों की संगति बैठाने से मूलकथा का ध्वन्यार्थ होता है कि व्यक्ति जब तक ऐश्वर्य लिप्सा महत्वाकांक्षा के झूले पर झूलता रहता है तब तक उसे जगत का पदार्थ सत्य ही दिखाई देता है। एक का पदार्थ सत्य दूसरे के पदार्थ सत्य को चुनौती नहीं दे सकता। भरत की महत्वाकांक्षा बाहुबली के अंहकार से टकराती है जिसका परिणाम युद्ध, विषमता, अशान्ति एवं कलह होता है किन्तु लोकान्तिक देव की आकाशवाणी की प्रेरणा से बाहुबली का अहंकार शमित होता है, वे मानसिक संघर्ष से मुक्त हो युद्ध से विरत आत्मसाधना के लिए प्रस्थान करते हैं। फिर भी अहंकार का सूक्ष्म रूप उनमें विद्यमान रहता है। 'समत्व' की दृष्टि प्राप्त हो जाने पर उन्हें 1651
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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