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________________ प्रयोग का पता ही न चले। आचार्य महाप्रज्ञ ने सहज में ही शब्दालंकार एवं अर्थालंकारों से संबंधित विविध अलंकारों, जैसे :- अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण, उदाहरण, विरोधाभास, अर्थान्तरन्यास, विशेषोक्ति, पुनरूक्ति प्रकाश, व्यतिरेक, स्वभावोक्ति आदि अलंकारों की योजना की है। जिसका परीक्षण निम्नलिखित रूप में किया जा सकता है। " अनुप्रास : अनुप्रास कवि का प्रिय अलंकार है। पूरे महाकाव्य में शब्द सौंदर्य की छटा इसके माध्यम से देखी जा सकती है। जैसे : 1) तरू-तरू तरूणीफल आभास, तरूणों के स्वर में उपहास। ऋ.पृ.-78. __ यहाँ 'त' वर्ण की आवृत्ति से नाद सौंदर्य की उत्पत्ति हुई है। 2) समान वर्ण लयात्मकता एवं संगीतात्मकता का भी सृजन करते हैं लीलालीन ललित ललना की, पादाहति से रूष्ट। ऋ.प.-79. 3) अपनेपन के विस्तार-बन्धन में अनुप्रास की छटा अद्भुत है : मम माता, मम पिता सहोदर, मेरी पत्नी, मेरा पुत्र। मेरा घर है, मेरा धन है, सघन हुआ ममता का सूत्र। ऋ.पृ.-68. यमक : जहाँ एक शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार हो और प्रत्येक का अर्थ अलग-अलग हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। 1) उत्सुक नयनों में दुत प्रतिबिम्ब वाणी, श्री नाभि-नाभि से उत्थित वर कल्याणी। उक्त उदाहरण में प्रथम नाभि का अर्थ ऋषभ के पिता से और द्वितीय नाभि का अर्थ शरीर के केंद्र से है जहाँ से यौगिक क्रियाएँ प्रारंभ की जाती है। 2) बाहु-बाहु में बल विकसित है, मल्ल युद्ध देगा आमोद।ऋ. पृ.-279. यहाँ प्रथम बाहु का अर्थ बाहुबली से तथा द्वितीय बाहु का अर्थ भुजा से है। 1451
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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