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________________ पुनरूक्ति प्रकाश : जहाँ केवल सौंदर्य सृजन के लिए शब्दों की आवृत्ति हो वहाँ पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार होता है, जैसे : 1) बिन्दु-बिन्दु का सघन समुच्चय। ऋ.पृ.-20. 2) महामहिम के अंग-अंग पर, यौवन सहसा लहराया। ऋ.पृ.-38. 3) कण-कण दृष्ट करूण साकार, शाखा शाखा कंप विकार। ऋ. पृ.-79 यहाँ बिन्दु-बिन्दु, अंग-अंग, कण-कण शब्दों की आवृत्ति अर्थ को और भी गहन कर उसके सौंदर्य का कारण बनती है। इस अलंकार का कवि ने अत्याधिक उपयोग किया है। उपमा : उपमा के द्वारा सहधर्मता के कारण एक वस्तु की दूसरे वस्तु से तुलना की जाती है। उपमेय, उपमान, वाचक, साधारण धर्म उपमा के अंग हैं। दिनकर के अनुसार सही अर्थों में मौलिक कवि वह है, जिसके उपमान मौलिक होते हैं। यह मौलिकता ऋषभायण में देखी जा सकती है, जैसे : 1) माता भी मरूदेवा स्तम्भित, मौन मूर्ति सी खड़ी रही। ऋ.पृ.-106. 2) चार दंत वाला हिमगिरि-सा, श्वेत समुन्नत गज आया। ऋ.पृ.-15. 3) शांत-सिंधु सा मौन भरत नृप, चिंतन की मुद्रा अभिराम। ऋ.पृ.-263. उक्त उदाहरण में क्रमशः 'मूर्ति', 'हिमगिरी' एवं 'सिंधु' का प्रयोग उपमान के रूप में किया गया है। जिससे क्रमशः उपमेय की स्थिति बिम्बित हुयी है। (5) रूपक : जहाँ उपमेय और उपमान में केवल सादृश्य ही नहीं अपितु दोनों को एक बना दिया जाता है, तब रूपक अलंकार होता है, जैसे :-- 1) इस लोभ-अग्नि में सब कुछ होता स्वाहा। ऋ.पृ.-21. यहाँ यह बताया गया है कि लोभ (उपमेय) रूपी अग्नि (उपमान) से सब कुछ नष्ट हो जाता है। अर्थात् उपमेय पर उपमान का आरोप प्रमाणित है। 461
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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