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________________ हो गये हों। देखिए, क्रोध का प्रचण्डतम रूप :- . सिंहनाद से हुआ प्रकम्पित, भरतेश्वर का सेना-चक्र। किया पलायन योद्धागण ने, कौन? बाहुबलि अथवा शक्र। ऋ.पृ.-255 युद्ध के मैदान में अपने विद्या के प्रभाव से महामारी फैला रहे अनिलवेग के प्रति सेनापति सुषेण का क्रोध निम्नलिखित पंक्तियों में व्यक्त हुआ है : मौन करो अब अनिल वेग! तुम, बहुत अनर्गल किया प्रलाप, छलना की वैतरणी में रे! कैसे धुल पाएगा पाप ? ऋ.पृ.-257. प्रसंगवश रणक्षेत्र में अन्य स्थलों पर भी रौद्र रस को देखा जा सकता है। वीभत्स रस : घृणा, जुगुप्सा स्थायी भाव वीभत्स रस के स्फुरण का कारण होता है। ऋषभायण में वीभत्स रस के उदाहरण कम ही मिलेंगे युद्ध के परिप्रेक्ष्य में भरत का चिंतन उद्धृत किया जा सकता है : निज अहं को पुष्ट करने, की महेच्छा युद्ध है। रक्त-रंजित भूमि नर की क्रूरता पर क्रुद्ध है। ऋ.पृ.-220 करूण रस : __ शोक, स्थायी भाव से करूण रस की उत्पत्ति होती है। वाल्मीकि ने 'रामायण' की रचना करूण रस को ही आधार बनाकर किया है। ऋषभायण में करूण रस की झलक यत्र-तत्र देखी जा सकती है। बाहुबली द्वारा ऋषभ के दर्शन न होने पर उनके द्वारा करूण विलाप हृदय को छू जाता है : कितने सपने, कितने भाव! कितने चिंतन के अनुभाव! कौन सुनेगा? दीनदयालु! मुझ पर थे तुम सदा कृपालु । ऋ.पृ.-138. बाहुबली के मन में अनुताप का उबाल निम्नलिखित करूण विलाप में देखा जा सकता है : 42]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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