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का निर्माण हो जाता है
लोहदण्ड ले भरत शीष पर, किया बाहुबलि ने प्रतिघात ।
हुआ प्रकम्पित भू का आशय, गर्ता का निर्माण अखात । ऋ. पू. - 282.
भयानक रस :
युद्ध में मात्र व्यक्ति के पौरूष का ही प्रदर्शन नहीं होता, अपितु अदृश्य शक्तियां भी अपने उपासकों के सहयोग के लिए बादल का रूप धारण कर विरोधी सेना के लिए महामारी का दृश्य उपस्थित कर देती है भरत और गिरिजनों के युद्ध में, गिरिजनों की ओर से 'मेघमुख के प्रलयंकारी आक्रमण से भरत की सेना में 'भय' का वातावरण छा जाता है । जैसे
सहसा श्यामल अंभोधर की, घटा गगन में छाई चमक चमक पीतिम बिजली ने अपनी छटा दिखाई मुसल सदृश वर्षा की धारा, कांप उठा सेनानी आंदोलित सेना का मानस, किसने लिखी कहानी ?
ऋ. पृ. 175
रौद्र रस :
क्रोध स्थायी भाव से रौद्र रस का प्रकाशन होता है । इस भाव के उत्पन्न होते ही सम्पूर्ण स्नायुयों में कठोर आवेगों का संचरण होने लगता है। अपमान, तिरस्कार, कटुवाणी आदि के द्वारा प्रतिपक्षी को आहत किया जाता है । भरत जब मर्यादा का अतिक्रमण कर चक्ररत्न से बाहुबली पर आघात करते हैं तब उसके प्रतिउत्तर में बाहुबली क्रोध से परिपूर्ण हो अपनी प्रतिक्रिया निम्नलिखित रूप में व्यक्त करते हैं :
उठा हाथ, तन गई मुष्टि भी दौड़ा भरतेश्वर की ओर,
रौद्र मूर्ति से लगी टपकने, साध्वश की धारा अति घोर । ऋ. पृ. 287.
बाहुबली के पुत्र सिंहरथ जब रणाङ्गन में प्रवेश करते हैं, तब क्रोधावेश में उनके सिंहनाद से भरत की सेना प्रकम्पित हो जाती है । यहाँ भरत की सेना को ऐसा लगता है जैसे युद्ध के मैदान में बाहुबली अथवा इंद्र उपस्थित
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