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________________ मूलभाव एक प्रकार से काव्य की चौहद्दी (घेरा) होते हैं । यदि काव्य रचना की प्रवृत्ति पर विचार करें तो वर्तमान समय में आदर्श परक, यथार्थपरक एवं दर्शन अध्यात्म से संबंधित काव्य दृष्टिगोचर होते हैं जिसमें आवश्यकतानुरूप कवि द्वारा रस की योजना की जाती है । ऋषभायण एक दार्शनिक एवं आध्यात्मिक काव्य है, जिसमें प्रसंगवश विविध रसों की योजना की गई है शांत रस : ऋषभायण महाकाव्य में अंगी रस के रूप में शांत रस की चरम व्याप्ति है। 'शम' अथवा निर्वेद स्थायी भाव से शांत रस की उत्पत्ति होती है । आध्यात्मिक, दार्शनिक तथा भक्तिमय काव्य का रूपांकन शांत रस के द्वारा ही किया जाता है । आत्मानन्द की अनुभूति हो जाने पर सुख-दुख से संबंधित जितनी भी संवेदनाएं हैं वे स्वमेव परिशांत हो जाती हैं। निर्गुण आत्मानंद का स्वरूप प्रतिक्षण दिखाई देने लगता है, जैसे सुख दुख की संवेदना, से होता है मंद, वह संवेदन से परे, आत्मा का आनंद । — निर्गुण आत्मानन्द में, हुए प्रतिक्षण लीन, जैसे सलिल निमग्न हो, महासिंधु का मीन। ऋ. पृ. 107-108. आत्मा ही सत्य है, शिव है, सुंदर है, परमात्मा की अनुभूति आत्मा के स्फुरण से ही संभव है । यहाँ परमात्मा का आशय किसी ईश्वर से नहीं अपितु परम+आत्मा यानी आत्मा के श्रेष्ठ स्वरूप से है । उसका रूप अतिसूक्ष्म है। योगियों के लिए जहाँ सतत अभ्यास से उसे समझना सहज है, वहीं अन्य के लिए दुर्लभ भी, जैसे : • आत्मा सत्यं शिवम् सुंदरं आत्मा मंगलमय अभिधान उपादान है परमात्मा का संयम है उसका अवदान
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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