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________________ सक्रिय रहता है। मन तथा इंद्रियों पर हमेशा-हमेशा के लिए पूर्ण विराम लग .. जाता है। इस प्रकार आचार्य महाप्रज्ञ ने नाभि-मरूदेवा संवाद, ऋषभजनप्रतिनिधि संवाद, सुनंदा-पिता संवाद, युगल गण-नाभि संवाद, धरण, नमि-विनमि संवाद, मरूदेवा–पनिहारिन संवाद, देव-गिरिजन संवाद, भरत-नियोगी संवाद, ऋषभ-भरत संवाद, सुषेण–भरत संवाद, मंत्री-भरत संवाद, बाहुबली-दूत संवाद, भरत-सुवेग संवाद, बाहुबली-सूर्ययशा संवाद, भरत-बाहुबली संवाद के द्वारा कथानक को गति देते हुए जीवन के श्रेष्ठतम उद्देश्य निर्वाण की महत्ता का प्रतिपादन किया है। > रस रस काव्य का प्राण तत्व है। काव्य का जन्म ही रस दशा में हुआ था, अतः रसवाद के बीज वाल्मीकि रामायण में ही मिल जाते हैं। संपूर्ण जातीय जीवन का महाकाव्य होने के कारण स्वभावतः उसमें नाना परिस्थितियों का और उससे उत्पन्न मानव दशाओं का चित्रण हैं, अतएव समस्त रस भावादि की प्रभु सामग्री वहाँ सहज ही प्राप्त है। महाभारत के विषय में भी यही सत्य है, महाभारत ही क्यों? ऋग्वेदादि में, ब्राम्हण ग्रंथों में भी संयोग-वियोग, शांत, अद्भुत, रौद्र, वीभत्स और भयानक आदि के अपूर्व वर्णन मिलते हैं |(16) भारतीय मनीषियों ने 'रसै वै सः' कथन से रस को परमात्म रूप में ही मान्यता दी है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार-"जिस प्रकार मामूली ईंट पत्थर के टुकड़ों से शिल्पकार उत्तम महल बना देता है। उसी प्रकार साधारण शब्दों और भावों की सहायता से कवि अलौकिक रस की सृष्टि करता है। (17) रस से दिव्य लोकोत्तर आनंद की अनुभूति होती है। इससे चेतना का दिव्य रूप में परिष्कार होता है। रस के क्रिया व्यापार में विभाव, अनुभाव, संचारी भाव की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, ये ही स्थावी भाव को पुष्ट कर उसे रसदशा तक पहुँचाते हैं। आचार्यों ने स्थायी भावों की स्थिति रति, हास, शोक, क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा, आश्चर्य, निर्वेद एवं अपत्य स्नेह के रूप में माना है। ये | 38
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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