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________________ उत्थान के बाद पतन और पतन के बाद उत्थान नैसर्गिक धर्म है। । पराजय के पश्चात् भरत के मन में ग्लानि का सूत्रपात हुआ। विजयी बाहुबली द्वारा योग की ओर बढ़े कदम जैसे भरत के ज्ञान को भी खोल दिए और एक समय आया कि भरत भी भाई व पिता के पद चिन्हों पर चलने के लिए आतुर हो उठे। अंत में ऋषभ के संबोध से भरत की जीवनदशा ही परिवर्तित हो गयी। जिसे भरत-ऋषभ संवाद में देखा जा सकता है - भरत :- प्रभुवर! मेरे बंधु प्रवर ने, आत्म-राज्य में किया प्रवास, केवल मेरा ही है स्वामिन्! भौतिकता में अटल निवास। कब वह शतक बनेगा पूरा? कब होगा मेरा सन्यास? कब होगी आत्मा की गति-मति? अंतस्तल का अमल प्रकाश। ऋ.प.-297. इस कृशानु को शांत करे वह, सलिल मिले, दो प्रभु! आशीष।ऋ.पृ.-298. भरत परिवार के संपूर्ण सदस्यों को भक्तिमार्ग, योग मार्ग पर अग्रसर होते देख व्याकुल हो उठते हैं उन्हें साम्राज्य अब सुख सुकून न देकर उनकी चिन्ता को बढ़ा रहा है। वे भी उसी मार्ग पर जाना चाहते हैं। उनकी संपूर्ण उद्विग्नता को शांत करते हुए ऋषभ कहते हैं : आत्मा का संबोध मिला है, फिर क्यों भरत! बने हो दीन ? विपुल जलाशय में रहकर भी, हंत! प्यास से आकुल मीन। अनासक्ति की प्रवर साधना, बढ़े शुक्ल का जैसे चंद्र। जल से ऊपर जलज निरंतर, रवि रहता नभ में निस्तंद्र। ऋ.पृ.-298. अंततः भरत भी योग मार्ग को स्वीकार कर राज्य की आसक्ति से मुक्त हो जाते हैं। आत्मजागरण की अवस्था में महत्वाकांक्षा का स्वमेव उपशमन हो जाता है। भरत द्वारा अपने भाईयों के भक्तियोग मार्ग को स्वीकार कर उसी राह पर चलना संयम और त्याग के कारण ही संभव हो सका है। साधना में अहंकार, क्रोध, माया, मोह, मद, लोभ बाधक है। ये ऐसे मनोविकार हैं, जिनके उत्पन्न होते ही मन की चंचलता और निरंकुशता उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है। इससे चित्तवृत्तियों में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है। साधक 361
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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