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नमि - विनमि :
नमि और विनमि ऋषभ के पालित पुत्र हैं । जिस समय ऋषभ अपने पुत्रों को राज्य व्यवस्था का दायित्व सौंप रहे थे उस समय ये दोनों यात्रा पर थे । दोनों में सहजता और सरलता है। सहजता, सरलता और स्वाभिमान के भाव से ये मण्डित हैं। ऋषभ के प्रति उनमें आस्था एवं परिपूर्ण विश्वास है । राज्य की कामना है, किन्तु वे राज्य भरत से नहीं ऋषभ से प्राप्त करना चाहते हैं । उलाहना के स्वर में साधनारत ऋषभ से वे कहते हैं :
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दो संविभाग ओ! कैसे हमें विसारा ? कैसे बदला यह आकाशी ध्रुवतारा ?
ऋ. पृ. 122.
गौरी और प्रज्ञप्ति विद्या से मंडित नमि और विनमि विद्याधर भी है । धरण द्वारा प्रदत्त विद्याओं के बल पर हिमालय पर ये अपना साम्राज्य स्थापित करते हैं। स्वतंत्रता के ये पक्षधर हैं जैसा कि भरत द्वारा भेजे गये युद्ध के प्रस्ताव पर नमि - विनमि कहते हैं
'अपनी स्वतंत्रता लगती सबको प्यारी
क्या दावानल में खिलती केशर क्यारी ?"
भरत के प्रति उनके हृदय में सम्मान भाव है, किंतु स्वाभिमान के खिलाफ वे समझौता नहीं करना चाहते और युद्ध में प्रवृत्त होते हैं । युद्ध में नमि और विनमि की पराजय भले ही होती है, किंतु विद्या मण्डित उनका शौर्य प्रदर्शन अद्भुत है । अपने राज्य को नमि और विनमि ने अथक परिश्रम से विकसित राज्य के रूप में निर्मित किया है । कथा में इनकी योजना एक महत्वपूर्ण पात्र के रूप में हुई है जो 'आहव संस्कृति' से प्रभावित तो होते हैं, किंतु अपनी राजनीति व कूटनीति से भरत से संधि कर राज्य का संचालन करते हैं।
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ब्राह्मी एवं सुंदरी :
ब्राह्मी एवं सुंदरी ऋषभ की पुत्रियाँ हैं, जो सर्वगुण सम्पन्न । सादगी, त्याग से मण्डित इनका जीवन दैदीप्यमान है। दोनों क्रमशः 'लिपिन्यास' एवं 'गणित शास्त्र' की विदुषी हैं। राज्य में विद्या के प्रचार-प्रसार एवं जनजागृति में इनकी
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