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________________ आत्मा का साक्षात् हुआ है, उदित हुआ है केवल ज्ञान, सहज साधना सिद्ध हुयी, अनासक्ति का यह अवदान। ऋ.पृ.-301 आसक्ति बंधन है और अनासक्ति मक्ति - छूट गया साम्राज्य सकल अब, नहीं रहा जन का सम्राट। टूट गये सीमा के बंधन, प्रगट हुआ है रूप विराट। ऋ.पृ.-301. सांसारिक दुश्चिंताओं, बंधनों की मुक्ति के पश्चात् ही आत्मा के विराट रूप का दर्शन संभव है। अंततः ऋषभ के निर्वाण के साथ ही अट्ठारहवें अंतिम सर्ग का समापन होता है। निष्कर्षतः महाकाव्य का वस्तुपक्ष लोक दर्शन एवं अध्यात्म की पूर्ण चेतना से मंडित है। कवि पग-पग पर लोकव्यवहार के साथ दर्शन पक्ष को उद्घाटित कर लोक की नित्यता एवं आत्मा की पूर्णता को व्यक्त करते हैं। युद्ध के बाद विरक्ति, बाह्य जगत से अंतर्जगत् में प्रवेश करने को प्रक्रिया है। संकटापन्न स्थितियों से उबारते हुए ऋषभ द्वारा पूरे परिवार का आत्मसाधना के केन्द्र में उपस्थित कर परमशांति की उपस्थापना कवि की विचार सरणि का उद्देश्य है। » नेता और रस महाकाव्य में नेता अथवा नायक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, वह केंद्रीय पात्र होता है। यही कथानक को विभिन्न स्थितियों के माध्यम से अंतिम फल या कार्य की ओर ले जाता है। अंतिम फल की उपलब्धि भी इसी से होती है। प्राचीन आचार्यों ने इसके स्वरूप और कार्य की प्रकल्पना भी अत्यन्त उदात्त रूप से की है। आदर्श प्रधानता के कारण नायक के जिन आदर्श गुणों की कल्पना की गयी है, वे इस प्रकार हैं – नायक नम्र, सुंदर, त्यागी, कुशल, प्रियभाषी, भाषण-पटु, शुद्ध स्वभाव, लोकप्रिय, स्थिर चित्त, कुलीन, युवा, साहसी, बुद्धिमान, कलाकार, शूरवीर, तेजस्वी, धीर स्वभाव, तीव्र स्मृति, धार्मिक, शास्त्रज्ञ और सुरूचि सम्पन्न होना चाहिए।
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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