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________________ अनुभूत सत्य को कैसे मैं झुठलाऊँ ? कैसे मैं सबको मन की बात बताऊ ? ऋ.पृ.-246. भरत का अंतर्द्वद्व और भी सघन होता है, स्वयं को युद्ध का कारण मानते हुए वे इस सत्य को स्वीकार करते हैं - यदि भरत मनस में रण का बीज न बोता तो समर भूमि में बहलीश्वर क्यों होता ? अब फसल काटने की होगी तैयारी है तीन लोक से रण की मथुरा न्यारी जब भाई-भाई के शोणित का प्यासा तब सेना से क्या हो मैत्री की आशा ? मानव मानव को घायल कर खुश होता मानवता घायल होती भूधर रोता ऋ.पृ.-250. यह बलवान के मन में उससे भी अधिक बलवान का भय है, साथ ही एक संदेश भी कि युद्ध में मानवता का ही संहार होता है, जिससे अचल हिमालय भी प्रकंपित हो जाता है। ___ सोलहवें सर्ग में 'भरत बाहुबली युद्ध' वर्णित है। दोनों भाईयों की सेनाएँ आमने-सामने युद्ध के लिए सन्नद्ध है। एक ओर चक्ररत्नों का सुरक्षाकवच तो दूसरी ओर विद्याधरों की संहारक विद्या। भयानक युद्ध हुआ। दोनों पक्षों के असंख्य सैनिक मारे गए। इस भीषण संग्राम में कभी भरत की सेना विचलित होती तो कभी बाहुबली की। इस समरांगण में, विजयश्री का वरण कौन करेगा? कहना मुश्किल था। ऐसा ही युद्ध कालान्तर में 'महाभारत' के नाम से जाना गया, वह युद्ध भी एक ही वंश के मध्य लड़ा गया था। युद्ध की संस्कृति एवं मान्यता ही अलग है जिसे निम्न पंक्तियों में देखा जा सकता है :-- वध करने वाला अपराधी, माना जाता है सर्वत्र। युद्ध भूमि में शत-शत घाती, बन जाता वीरों का छत्र। ऋ.पृ.-262 और यह भी - 20
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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