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________________ स्वर्ग की अनुभूति धरती, अमित पल पल पा रही गांव की जनता प्रफुल्लित, भक्तिगाथा गा रही। ऋ.पृ. 117 दृढ़ संकल्प के लिए पुराण में विख्यात 'धुवतारा' का बिम्ब भी कवि ने निरूपित किया है। साम्राज्य प्राप्ति के हक से वंचित ऋषभ के प्रति नमि विनमि के आश्चर्य भाव की अभिव्यक्ति के लिए कवि ने इस बिम्ब का उपयोग किया है - आक्रोश, कल्पना, श्रद्धा सभी समेटे, प्रभु सम्मुख आए दोनों पालित बेटे दो संविभाग ओ ! कैसे हमें विसारा ? कैसे बदला यह आकाशी धुवतारा ? ऋ.पृ. 122 ऋषभ की समाधिस्थ अवस्था में भगवान शिव का भी बिम्ब दर्शित है। नमि-विनमि ऋषभ से प्रार्थना करते हुए कहते हैं - अब मौन खोल सस्नेह महेश ! निहारो अधिकार सभी को प्रिय जननाथ! विचारो । ऋ.पृ. 122 मृत्यु के पश्चात् जीव द्वारा वैतरणी नदी पार करने की मान्यता को भी बिम्ब का आधार बनाया गया है जिसे युद्ध के परिप्रेक्ष्य में अनिलवेग को संबोधित . भरत सैन्य के सेनापति के कथन में देखा जा सकता है - मौन करो अब अनिलवेग ! तुम बहुत अनर्गल किया प्रलाप छलना की वैतरणी में रे ! कैसे धुल पाएगा पाप ? ऋ.पृ. 257 समुद्रमंथन के पश्चात् अमृतपान के अपराध में विष्णु के चक्र से धड़ से विरहित राहु के मस्तक का बिम्ब भी कवि ने निरूपित किया है। रणक्षेत्र में बाहुबलि के दण्ड प्रहार से भूमि में कंठ तक निमग्न भरत का मस्तक उस समय ऐसा दिखाई दे रहा था, जैसे राहु का कटा हुआ सिर हो - 'शीश राहु का' सूत्र तर्क का, देखा सेना ने प्रत्यक्ष केवल शाखा, तना नहीं है, धड़ से विरहित सिर का कक्ष। ऋ.पू. 283 [334]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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