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________________ __ पूर्ण पराजय के पश्चात् प्राण घात की दृष्टि से भरत द्वारा बाहुबली पर प्रक्षेपित चक्र जब बाहुबली की प्रदक्षिणा कर उनके दक्षिण कर में विराजमान हो जाता है तब चक्र के प्रति भरत की शुभ धारणा परिवर्तित हो जाती है। वे जिस चक्र को दुग्ध के समान बलदायी समझते थे, वह तो जल से परिपूर्ण तक्र की भाँति निस्सार ही निकला - यदि मै। चक्री अनुज हाथ में, कैसे आश्रित जैसा चक्र ? मान रखा मैने पय जिसको, वह तो जल से पूरित तक्र। ऋ.पृ. 286 एकाग्र चित्त से किया गया श्रम फलीभूत होता है। इस अभिव्यक्ति के लिए 'जिन खोजा तिन पाइया' लोकोक्ति प्रचलन में है, जिसके लिए कवि ने 'खोजा उसने पाया' का कथन किया है। सेनापति सुषेण द्वारा विनम्रता पूर्वक दण्डरत्न को ग्रहण करने के सन्दर्भ में इस लोकोक्ति का प्रयोग किया गया है जो दृश्य एवं स्पर्य बिम्ब परक है - सेनापति ने दंड-रत्न को, कर प्रणिपात उठाया। विनय विजय का प्रथम मंत्र है, खोजा उसने पाया। ऋ.पृ. 168 किसी भी वस्तु की आवश्यकतानुरूप उपयोग विधि की जानकारी न होने पर हानि ही होती है। इस कथ्य के लिए 'कब धूलिपुंज में भरता जल से प्याला' बिम्ब का नियोजन किया गया ह। दावानल के अकस्मात् उत्पन्न होने पर ऋषभ ने युगलों को उसमें अन्न पकाकर तथा उसे चबा-चबाकर खाने की बात कही किन्तु अभी तक युगलों को भोजन पकाने की क्रिया का रंचमात्र भी ज्ञान न होने के कारण वे अन्न अग्नि में ही डाल दिए। जिससे वह जलकर राख हो गया। अज्ञान के कारण यगलों को मनोवांछित ध्येय की प्राप्ति नहीं हो सकी। यह लोकोक्ति युगलों की अज्ञान दशा का बिम्बांकन करती है - ला अन्न दवानल की ज्वाला में डाला कब धूलिपुंज में भरता जल से प्याला सब अन्न हो गया स्वाहा झट फिर आए। इसके अतिरिक्त 'निज पर शासन फिर अनुशासन' ऋ.पृ. 58 ऋ.पृ. 182 321]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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