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________________ अस्तित्व पर खतरा मँडराने के अर्थ में निरूपित किया गया है । भरत बाहुबली से युद्ध नहीं करना चाहते, वे चक्र की अस्मिता से भातृत्व प्रेम को अधिक महत्व देते हैं किन्तु मंत्री की कुमंत्रणा से भरत की साकारात्मक सोच नाकारात्मक सोच में परिवर्तित हो जाती है जिससे भ्रातृत्व सम्बन्ध की नाव मँझधार में फँसी हुई दिखाई देने लगती है — ऋषभ - पुत्रों में कलह हो, मान्य मुझको है नहीं चक्र रूठे, झठ जाए, बन्धु तो वही है नहीं X X X सोच में परिवर्त आया, नर विचित्र स्वभाव है । बंधु के संबंध की मझधार में अब नाव है। ऋ. पृ. 226 स्नेही स्वजनों के द्वारा परिवार के सदस्यों में भय के संचार के लिए 'अपने घर को भय उपजा अपने घर से' लोकोक्ति का बिम्बांकन किया गया है। बाहुबली से युद्ध के लिए भरत की तत्परता पारिवारिक स्तर पर भयावह व विनाशक ही है बहलीश्वर को संवाद मिला है चर से, अपने घर को भय उपजा अपने घर से । ऋ. पृ. 224 ऋ. पृ. 249 समय की अनुकूलता व प्रतिकूलता के लिए 'कभी नाव गाड़ी पर और कभी गाड़ी नाव पर ( कभी नाव में शकट उपस्थित कभी शकट में होती नाव ) लोकोक्ति बहुश्रुत है । भरत - बाहुबली की सेना के घमासान युद्ध में यह निर्णय करना कठिन था कि विजय किसकी होगी ? कभी बाहुबली की सेना भरत की सेना पर भारी पड़ती तो कभी भरत की सेना बाहुबली की सेना पर अवसर का अपना बल होता, कभी शकट में होती नाव कभी नाव में शकट उपस्थित, नियति-चक्र के अनगिन दाँव । ऋ.पू. 260 किसी व्यक्ति अथवा वस्तु का सही मूल्यांकन न कर पाने के संदर्भ में 'मान रखा मैंने पय जिसको, वह तो जल से पूरित तक्र' लोकोक्ति आस्वाद्य बिम्ब परक है। 320
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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