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अंधेरा दिखाई देने लगा, क्योंकि उसके जीवन को प्रकाशित करने वाले उसके सहचर का जीवन दीप असमय में ही बुझ गया था -
कोमल सिर को क्रूर नियति ने, पलभर में निष्प्राण किया मर्माहत-सी शिशु कन्या का, असमय में बुझ गया दिया।
ऋ.पृ. 40
लज्जित होने के अर्थ में 'माथा झुकना' मुहावरे का बिम्ब नियोजित है। युगलों की भोजन, वस्त्र और आवासीय समस्या का कोई समाधान न देखकर परिस्थितियों के समक्ष कुलकर नाभि अपना 'माथा झुका हुआ' पाते हैं -
बहुत अल्प आवास बचे हैं, युगल-कष्ट की गाथा है। समाधान है दृष्टि-अगोचर, झुका हुआ यह माथा है। ऋ.पृ. 45
किसी भी कार्यारम्भ के लिए 'सूत्रपात होना' तथा कार्य के स्थिरीकरण के लिए 'पैर जमाना' मुहावरे का बिम्बात्मक प्रयोग उस समय देखने को मिलता है, जब नाभि द्वारा स्वीकृति मिल जाने पर ऋषभ सह सुमंगला एवं सुनन्दा वैवाहिक बन्धन में बँधते हैं। तब से ही समाज में बहुपत्नीवाद के 'सूत्रपात से' इस परम्परा ने 'अपना पैर जमा लिया' -
पत्नी द्वय की नव रचना का, सूत्रपात हो जाएगा, बहुपत्नी का वाद असंशय, अपने पैर जमाएगा।
ऋ.पृ. 46
भूख से पीड़ित युगलों की विवशता के लिए दिन में तारे दिखाई देना' मुहावरे का बिम्ब प्रस्तुत किया गया है। कल्पवृक्षों के रूठ जाने पर युगलों के समक्ष भोजन-पान की समस्या इतनी जटिल हो गयी कि उसका निदान करने में असमर्थ युगलों को दिन में ही तारे दिखाई देने लगे -
ये रूठ रहे हैं कल्पवृक्ष भी सारे भूखों को दिन में दीख रहे हैं तारे ।
ऋ.पृ. 52
श्रेष्ठ जनों के प्रति आदर सम्मान व्यक्त करने के लिए 'शीश झुकाना' मुहावरा प्रचलित है। ऋषभ के तपोबल से प्रभावित सुरपति की प्रेरणा व आज्ञा से धनपति कुबेर ने युगलों की आवासीय समस्या सुलझाने हेतु दिव्य नगर की रचना
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