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________________ करने वाले सैकड़ों हजारों भाई-बहिन अपने तप को सोत्साह संपन्न करते हैं और नव वर्ष के लिए तप अभिक्रम का संकल्प लेते हैं। बैशाख शुक्ला तृतीया का यह दिन भगवान ऋषभ की स्मृति को जीवन्त बनाए हुए हैं।७) आठवें सर्ग में 'केवल ज्ञानोपलब्धि' का अंकन है। ऋषभ का तक्षशिला एवं अयोध्या के रमणीक उद्यानों में 'विहार' का उद्देश्य जनजागरण है। यह शुद्धाचरण के द्वारा धर्म प्रवर्तन की क्रिया है। मानव का उद्यानों, जंगलों से लगाव पर्यावरणिक उत्थान की दशा है। मानव के द्वारा प्रकृति का दिव्य स्वागत उसके प्रगाढ़ संबंधों का स्वागत है। प्राणी और पर्यावरण एक-दूसरे के पूरक हैं, मानव और तरू में स्थिति का भेद है और कोई भेद नहीं। मानव और तरू का संबंध सहज है। आज के परिवेश में जब वनों का क्षरण हो रहा हो तब आचार्य महाप्रज्ञ की निम्नलिखित पंक्तियां विचारणीय हो जाती है : मानव करता तरू से प्यार, तरू उसका जीवन आधार बोधि-उदय में सुतरू निमित्त निर्मल लेश्या निर्मल चित्त ऋ.पृ.-141. भविष्य में महावीर, महात्मा बुद्ध जैसे मनीषी वृक्ष की संगति से ही आत्मज्ञान के स्वामी हुए। वृक्ष आत्मज्ञान के वाहक हैं, उनकी छाया में निर्मल कर्म अथवा निर्मल लेश्या का प्रस्फुटन होता है, जिससे अंतःकरण की शुद्धि होती हैं। साधना के क्षेत्र में इंद्रियों का प्रत्याहार अनिवार्य है। काम, क्रोध, मद, लोभ, माया आदि मनोविकार साधना में बाधक है। इन मनोभावों के संयमित होते ही आत्मलोक का दर्शन होता है तथा आत्मा का पूर्ण प्रकाश फैल जाता है। कवि ने आत्म दर्शन के रहस्य को निम्न रूप से स्पष्ट किया है : आवरणों का विलय अशेष अंतराय का रहा न लेश सकल स्त्रोत हुआ चित्-स्त्रोत, कण-कण से निकला प्रद्योत। ऋ.पृ.-144 161
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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