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________________ के द्वारा ही हुआ। समस्याएँ यदि मानव के द्वारा ही निर्मित हुयी तो उसका निदान भी मानव के द्वारा ही किया गया। निम्नलिखित उद्धरण में 'संस्कृति' 'भूमि' और 'उर्वर' का लक्ष्यार्थ क्रमशः 'मनुष्य', 'मस्तिष्क' ओर उसकी 'प्रतिमा' से है। प्रत्येक काल में मानवों के समक्ष यदि समस्याएँ न आयी होती तो क्या उसका मस्तिष्क अभाव की मुक्ति के लिए उर्वर बन पाता ? - कालकृत संस्कृति समस्या, बीज यदि बोती नहीं भूमि चिन्तन-मनन की यह, उर्वरा होती नहीं। ऋ.पृ. 14 स्वतंत्र जीवन जीने वाले युगलों के लिए 'पंछी' तथा नियमों से प्रतिबद्ध उनके जीवन को 'पिंजड़ा' लाक्षणिक बिम्ब से व्यक्त किया गया है। मुक्तगगन में पक्षी के समान विचरण करने वाले युगल क्या विधि विधान रूपी पिंजड़े से पलभर भी प्यार कर सकेंगे? अर्थात नहीं - मुक्त पवन में श्वास लिया है, मुक्त गगन में किया विहार। उस पंछी का कैसे होगा, पल भर भी पिंजड़े से प्यार। ऋ.पृ. 19 ‘स्वीकारोक्ति' की अभिव्यक्ति के लिए 'ओढ़ा' तथा मन की निर्लिप्तता के लिए 'उत्पल' का लाक्षणिक प्रयोग भी कुलकर यशस्वान् के संदर्भ में दृष्टव्य है - उत्तरदायित्व यशस्वी ने, ओढा सानंद मनस्वी ने उत्पल-निर्लेप तपस्वी ने, संकल्प लिए मधु रस भीने। ऋ.पृ. 24 'वस्त्र खण्ड' एवं 'जीर्ण' लक्ष्यार्थ से क्रमशः शरीर और मृत्यु का बिम्ब निरूपित किया गया है। 'निद्रा' लक्ष्यार्थ से भी अभिधेयार्थ से परे मृत्यु के लिए मुख्यार्थ ग्रहणीय है। नर शिशु की मृत्यु पर शोक संतप्त बालिका का भावान्कन लक्षणा के सहारे ही जीवन्त हो सका है - समझाया तब मंत्र मृत्यु का, अंतःकरण विदीर्ण हुआ अधुना परिहित वस्त्र-खंड यह, हा! अधुना ही जीर्ण हुआ। भाई निद्रा की मुद्रा में, फिर न कहीं मिल पाएंगे। ऋ.पृ. 41 संपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए 'कामधेनु' का लाक्षणिक बिम्ब भी [305]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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