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________________ निरूपित किया गया है। 'विद्या' और 'कामदुहा धेनु' में सादृश्य सम्बन्ध नहीं तात्कर्म्य सम्बन्ध है। जिस प्रकार से कामधेनु से सम्पूर्ण कामनाओ की पूर्ति होती है, वैसे ही विद्या भी संपूर्ण कामनाओं की पूर्ति करती है। विद्या विकास के उदेदश्य से ऋषभ अपनी पुत्रियों से कहते हैं - पढ़ो पुत्रियों! कर्मभूमि में, विद्या का होगा सम्मान। विद्या कामदुहा धेनू है, कल्पवृक्ष का नव प्रस्थान। ऋ.पृ. 66 'रीति नीति' की अभिव्यक्ति के लिए ‘पथ' शब्द की योजना की गयी है। वस्तुतः पथ का अर्थ होता है 'रास्ता'। जबकि यहाँ पथ का लक्ष्यार्थ होगा 'नीति'. अर्थात् संयम नीति (इन्द्रिय निग्रह) का पालन करते हुए अध्यात्म मार्ग पर चलना। योग मार्ग पर चलने के लिए तत्पर ऋषभदेव भरत से कहते हैं - लो दायित्व संभालो अपना, सिंहासन आसीन। मैं संयम-पथ पर चलता हूँ, बन आत्मा में लीन। ऋ.पृ. 83 'अमल कमल' लक्ष्यार्थ से ऋषम के मन की निर्लिप्तता तथा आत्मा की परिपुष्टता का भी बिम्बांकन किया गया है। 'मधुकर' शब्द लाक्षणिक रूप में स्वतः बाहुबली एवं 'परिमल' ऋषभ के प्रति आकर्षण का वाहक है। जिस प्रकार भ्रमर कमल के सुवास से प्रतिबद्ध होता है वैसे ही बाहुबली का मन रूपी भौंरा भी कमल स्वरूप ऋषभ के सम्बन्धाकर्षण से दूर रहने में असमर्थ है - यह अमल कमल अब दूर-दूर जाएगा। मधुकर परिमल से दूर न हो पाएगा। ऋ.पृ. 105 समान गुणधर्म के आधार पर कवि ने लक्षणा परक कई बिम्ब निर्मित किए हैं। जैसा कि निम्नलिखित पंक्तियों में देखा जा सकता है - आ गया परिवार परिवृत, ऋषभ सन्निधि में रूका चरण सरसिज पुष्परज में, शीर्ष श्रद्धा से झुका । ऋ.पृ. 128 यहाँ 'चरण सरसिज' में गौणी लक्षणा है। सरसिज का प्रधान गुण है-कोमलता, जिसका आरोपण ऋषभ के चरणों पर कर उसे कमल के समान 3061
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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