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________________ गया है। वे सुवेग से एक सामान्य व्यक्ति की भाँति परिवार का हाल-चाल पूछते हुए बचपन में भरत के साथ बिताये हुए दिनों की याद भी करते हैं - ऋ.पृ. 233 कुशल कौशल देश में है, स्वजन जन-जन कुशल हैं ? विजय यात्रा से समागत, भरत भाई कुशल हैं ? मुदित है मन आज मेरा, गात्र पुलकित हो रहा सकल जागृत हो गया जो, स्मृति-पटल पर सो रहा । अंक यह पर्यक जैसा, तात का उपलब्ध था मैं प्रथम आसीन होता. भरत उससे स्तब्ध था। भरत जब आसीन होता, श्री पिता की गोद में दूर कर देता उसे मैं, शिशु सुलभ आमोद में। मत करो अविनय अवज्ञा, भरत तुम से ज्येष्ठ है। रोक देते तात मुझको, वचन वैभव श्रेष्ठ है। ऋ.पृ. 234 इस प्रकार अभिधात्मक बिम्ब का प्रकाशन कवि ने सफलता पूर्वक किया --00-- 2. लक्षणा लाक्षणिकता अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण साधन है। जब अभिधेयार्थ से मुख्यार्थ को ग्रहण करने में बाधा उपस्थित होती है, तब लक्षणा शब्द शक्ति से मुख्यार्थ का आस्वादन किया जाता है। आचार्य महाप्रज्ञ की भाषा, लक्षणा व व्यंजना से परिपूर्ण है। लक्षणा का विशिष्ट गुणधर्म ही है चित्रात्मकता। इसीलिए लाक्षणिक शब्दों के प्रयोग से भाषा सामान्य अर्थ से परे वस्तु के गुणधर्म के आधार पर अपना विशिष्ट अर्थ देती है। यों तो सादृश्यमूलक अलंकार, मुहावरे आदि लाक्षणिक अर्थों के सशक्त वाहक हैं, जिसकी चर्चा उक्त शीर्षकों द्वारा बिम्ब निष्पादन में की जा चुकी है। भाषा को धारदार व कथ्य को उर्वर बनाने की दृष्टि से कवि ने कतिपय लाक्षणिक बिम्बों का सफल नियोजन किया है। निम्नलिखित उदाहरण में प्रकृति के | 303]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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