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________________ स्वर्ण, नाना मणि-निचय की, भेंट का प्रस्ताव है। पूज्य के सम्मुख समर्पण, मानवीय स्वभाव है। ऋ.पृ. 118 पत्र ऋषभ के प्रति माँ मरूदेवा की चिन्ता के बिम्बांकन में भी कवि ने अभिधा से काम लिया है। माँ मरूदेवा भरत से कहती है - आज अकेला, कौन दूसरा, सुख दुःख में उसका साथी ? पदचारी, पहले रहता था, चढ़ने को प्रस्तुत हाथी। पदत्राण नहीं चरणों में, पथ में होंगे प्रस्तर खंड तपती धरती, तपती बालू, होगा रवि का ताप प्रचंड ऋ.पृ.148 भूमी शय्या, वही बिछौना, नींद कहाँ से आएगी? रात्रि-जागरण करता होगा, स्मृति विस्मृति बन जाएगी । भरत ! तुम्हारा दोष नहीं है, कहाँ ऋषभ ने याद किया ? एक बार भी लघु-लघुतर सा, क्या कोई संवाद दिया ? ऋ.पृ. 149 योगी रूप में ऋषभ के व्यक्तित्व, एवं उसके प्रभाव से शकटमुख उद्यान की आभा का चित्रण अभिधापरक ही है। पनिहारिन माँ मरूदेवा से आँखों देखी मनोहारी दृश्य का वर्णन करती है - योगी है अलबेला स्वामिनि ! सिर पर आभामंडल है। ओजस्वी है, तेजस्वी है, देवाधिप आखंडल है। शिलापट्ट शोभित सिंहासन, महिमामंडित छत्र महान माताजी ! आश्चर्य, हो गए, हरे भरे सारे उद्यान। कण कण में सौरभ फैला है, करता है .सबको आहान। जनता कहती, आज आ गया, अलख अयोध्या का भगवान। ऋ.पृ. 152 चक्ररत्न के सहचर रत्न त्रयोदश के क्रियाकलापों के वर्णन में भी अभिधा की इतिवृत्ति सहायक हुयी है। भरत की आज्ञा से दिग्विजय के लिए प्रस्थान करती हुयी सेना दिव्य रत्नों से सज्जित एवं सुरक्षित है। सिन्धु नदी के पार्श्व देश में विजय ध्वज फहराने के लिए उत्सुक सेनापति ने चर्मरत्न के सहयोग से हिमगिरि परिसर वासियों को आत्म समर्पण करने के लिए विवश कर दिया। यहाँ सेनापति की क्रिया तथा चर्मरत्न के कार्य का बिम्बगत वर्णन भी अभिधा की देन है - 301
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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