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________________ ऋषभ का पद त्राण विहीन जंगल में चलना, मार्ग में प्रस्तर खण्डों का होना, धरती बालू की तपन, तथा सूर्य की प्रचण्ड धूप से शरीर का तपना मां की चिंता का स्वाभाविक कारण है - पदत्राण नहीं चरणों में, पथ में होंगे प्रस्तर खंड। तपती धरती, तपती बालू, होगा रवि का ताप प्रचंड ।। ऋ.पृ. 148 स्वप्न - सोते हुए असत्य बातों को सत्य समझना स्वप्न हैं । (७) गोस्वामी तुलसीदास ने 'रामचरित मानस' के 'सुंदरकांड' में 'त्रिजटा' के स्वप्न का बहुत ही सुंदर चित्रण किया है। ऋषभायण में पुत्र जन्म के पूर्व माँ मरूदेवा द्वारा देखे गये चौदह स्वप्नों के द्वारा कवि ने चित्र-विचित्र बिम्बों का निर्माण किया है ।(10) सुमंगला के द्वारा भी देखे गए स्वप्न इतने मधुर हैं जैसे - उन्होंने 'इस दिव्य निशा में अमृतमय प्याले का पान किया हो ।(11) श्रेयांस द्वारा स्वप्न में श्यामल स्वर्णगिरि का ‘पयस' से अभिषेक कर धवलित करने की मधुरता भी उन्हें अमृतपान के समान प्रतीत होती है । (12) भाव बिम्बों का समीक्षण - भाव बीज रूप में चित्त में सुरक्षित व स्थिर रहते हैं, अनुकूल परिस्थिति होने पर वे उत्पन्न होते हैं। जिस प्रकार बीज के अंकुरण के लिए हवा, पानी, नमी, प्रकाश, वायु आवश्यक होते हैं, उसी प्रकार भावों की उत्पत्ति के लिए घटनाएँ दृश्य व संवेदनाएं आवश्यक होती हैं। इन घटनाओं व दृश्यों के बिम्ब से उसी के अनुकूल भाव बनते हैं जिससे हृदय में स्थित भाव जागृत होते हैं। किसी भी दृश्य या घटना का बिम्ब जितना ही स्पष्ट होगा उसका भाव भी उतना ही प्रखर होगा। मैथुनरत क्रौंच वध का दृश्य वाल्मीकि को इस प्रकार मर्माहत किया कि उनकी आंखों से करूणा की धारा प्रवाहित हो चली । क्रौंच वध के बिम्ब के कारण ही 281
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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