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उनके हृदय में शोक स्थायी भाव का जागरण हुआ जो कालजयी ग्रंथ 'रामायण' की रचना का कारण बना।
भावबिम्बों की विवेचना में रसांगों की ही भूमिका होती है। जिन्हें स्थायीभाव, विभाव, संचारीभाव व अनुभाव के नाम से जाना जाता है। विभाव, स्थायीभाव की उत्पत्ति के कारण होते हैं। स्थायी भाव के अंतर्गत, रति, हास, शोक, क्रोध, भय, उत्साह, जुगुप्सा, वात्सल्य, भक्ति, निर्वेद तथा आश्चर्य भाव आते हैं। ऋषभायण में हास, जन्य भाव बिम्बों का अभाव है। रति जुगुप्सा विषयक बिम्बों के एकाध उदाहरण ही मिलते हैं। शेष स्थायी भावों के बिम्बों की बहुलता है, जिसमें भी भक्ति और निर्वेद परक बिम्बों के उद्घाटन में कवि ने अधिक तत्परता दिखाई हैं। निर्वेद का सम्बन्ध तत्व दर्शन एवं संसार की असारता से है इसीलिए ऐसे भाव बिम्ब के उद्घाटन में सूक्ष्मता भी आई है। संचारी भावों के अंतर्गत मोह, स्पृहा, हर्ष, प्रमाद, शंका, ईर्ष्या, मद, श्रम आदि भाव बिम्बों के अतिरिक्त लोभ, जड़ता, उत्सुकता, चिंता, स्वप्न आदि भाव बिम्बों का भी विस्तार ऋषभायण में दिखाई देता है, किन्तु रति, जुगुप्सा, प्रमाद भाव बिम्बों की स्थापना में कवि का मन नहीं रमा है, जो सन्त स्वभाव के अनुकुल ही जान पड़ता है। अनुभाव परक बिम्बों को स्थायी तथा संचारी भावों के अन्तर्गत देखा जा सकता है जिसमें मानवीय क्रियाओं अथवा चेष्टाओं के द्वारा उसका बिम्बांकन हुआ है। विवेचित भाव बिम्बों के आधार पर स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि ऋषभायण में बिम्ब स्थापना की दृष्टि से आचार्य महाप्रज्ञ को पूर्णरूपेण सफलता मिली है | इति चतुर्थ अध्यायः
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