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________________ यहां सुनन्दा की किंकर्तव्यविमूढ़ जड़ता का चित्रण स्थिर 'प्रतिमा' के बिम्ब से किया गया है। उसका न हिलना, न बोलना, 'मानस चिंतन का शून्य' हो जाना दृश्य उसकी जड़ता को प्रगाढ़ता देते हुए प्रतीत होते हैं । उत्सुकता इष्ट या इच्छित वस्तु की प्राप्ति में विलम्ब का न सह सकना औत्सुक्य कहलाता है। अकस्मात् जंगल में अग्नि के तेजस्वी रूप को देखकर युगलों में उसे स्पर्श करने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई । अपनी इस जिज्ञासा को शमित करने के लिए युगलों ने ज्यों ही उस दावाग्नि को स्पर्शित किया त्यों ही वे उससे झुलस गए देखा युगलों ने तेजस का अर्पण है, अभिनव अदृष्ट यह भावी का दर्पण है । उत्सुक हो छूने आगे हाथ बढ़ाए, दव-अनल - दाह से अलसाए झुलसाए । ऋ. पृ. 58 चक्रवर्ती भरत के अभिषेक की घोषणा से जनमानस का जिज्ञासु मन बेसब्री से प्रातःकाल की प्रतिक्षा में रत है। सबकी चेतना प्रफुल्ल और प्रशान्त इसलिए है क्योंकि उत्सुकता रूपी सूर्य का अभ्युदय हो चला है । यहाँ जनमानस के हृदय में व्याप्त उत्सुकता को 'सूर्य' के बिम्ब से प्रस्तुत किया गया है अरी नींद! तुम क्यों आओगी ?, नहीं मनस किंचित् भी क्लांत । उत्सुकता का सूर्य उदित है, चेता प्रमुदित और प्रशांत । ऋ. पृ. 189 चिन्ता हित या इष्ट की अप्राप्ति अथवा अहित या अनिष्ट की प्राप्ति के कारण उत्पन्न ध्यान को चिन्ता कहते हैं । पुत्र वियोग में व्यथित माँ मरूदेवा की वात्सल्य जन्य चिंता उनके रहन-सहन, आहार-विहार आदि के प्रति स्वाभाविक रूप में व्यक्त हुई है। वे भरत से कहती है तुम्हें पता क्या ? ऋषभ कहां है ? करता है कैसा आहार । सर्दी-गर्मी कैसे सहता ? कैसा है जीवन - व्यवहार ? 280 ऋ. पृ. 148
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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