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पश्चात् श्रम श्लथ शरीर विश्रांति को प्राप्त कर पनः श्रम के लिए उन्नतशील होता
लेट गया तरूवर के नीचे, करने को कुछ क्षण विश्राम। श्रम निद्रा को सहज निमंत्रण, निद्रा से श्रम भी उद्दाम।। ऋ.पृ. 199
श्रम जनित कृषक जीवन के बिम्ब से बहली देश की जनता का वर्णन किया गया है। बाहुबली के राज्य में सभी जन कृषि भूमि से सम्पन्न हैं। समय-समय पर मेघ भी उनकी कृषि का सिंचन करते हैं जिससे श्रम मंडित बहली देश में चारों ओर धन धान्य से पूर्ण उल्लास का ही वातावरण बना रहता है -
नाथ एक, सनाथ हम सब, भूमि सबके पास है। बरसता है जलद समुचित, श्रम जनित उल्लास है।।
ऋ.पृ. 231
ऋषभ ने जिस समाज की रचना अपने श्रम सीकरों से की है क्या उनकी ही संतानें युद्ध के भीषण रक्तपात से उसे सूखे घास के रूप में परिवर्तित कर देंगी। बाहुबली, पिता के श्रम की सराहना करते हुए भरत से कहते हैं -
सिंचित पूज्य पिता के श्रम की, बूंदों से है सकल समाज। उसको सूखा घास बनाने, आतुर हैं हम दोनों आज।।
ऋ.पृ. 269
अस्तू उक्त उदाहरणों के आलोक में श्रम भाव का बिम्ब स्पष्ट अथवा
अस्पष्ट रूप में परिलक्षित होता है।
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अन्य भाव -
विवेच्य भावों के अतिरिक्त लोभ, जड़ता, उत्सुकता तथा चिंता भाव के भी कतिपय बिम्ब ऋषभायण में प्रयुक्त हुए हैं, जिनका अवलोकन निम्नानुसार किया जा सकता है -