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वाली मेहनत या कार्य, दौड़धूप परेशानी) आदि श्रम के अन्तर्गत' ही आते हैं। जीवन रूपी पोत का संचालन पुरूषार्थ से ही होता है, पुरूषार्थ में श्रम निहित हैं। यहाँ श्रम-साध्य पोत के गतिजबिम्ब से पुरूषार्थ सम्मत जीवन प्रगति को व्यक्त किया गया है -
अपने पौरूष से चलता है, नवयवकों का जीवन पोत।
ऋ.पृ. 12
यह संसार कर्मभूमि है। कर्म में रत व्यक्ति ही जीवन का समुचित आनंद प्राप्त कर सकता है। हाथ कर्म के लिए ही निर्मित है। ऋषभ द्वारा युगलों को कर्म मार्ग पर चलने की प्रेरणा के लिए 'आंको इन हाथों का मूल्य' कथन किया गया है जिससे श्रम भाव की ही अभिव्यक्ति होती है -
आश्वासन का बोल मिला तब, डरो न, डरना मरना तुल्य ।
कर्मभूमि का प्राण कर्म है, आंको इन हाथों का मूल्य || ऋ.पृ. 70
ऋद्धि और समृद्धि की प्राप्ति श्रम से ही सम्भव है। युगलों द्वारा अनवरत श्रम एवं परस्पर सहयोग से चतुर्दिक वैभव विकास का बिम्ब निम्न पंक्तियां में दृष्टव्य है
श्रम कौशल सहयोग समर्जित, बढ़ी चतुर्दिक ऋद्धि-समृद्धि। ऋ.पृ. 72
भरत की सेना से पराजित होने के पश्चात् सिन्धु नदी की वालुका राशि से गिरिजनों के श्रम सीकर तो सूख गए किन्तु विजय की आकांक्षा उनमें बनी रही, उनके शरीर से प्रवाहित स्वेद की धारा जैसे सिन्धु के रूप में परिवर्तित हो गयी हो। यहां श्रम बिन्दु की प्रबलता को 'सिन्धु' बिम्ब से प्रस्तुत कर गिरिजनों के संघर्ष एवं अदम्य जीवटता को चित्रित किया गया है -
सिन्धु नदी की सिकता ने रण, श्रम के बिन्दु सुखाए। एक साथ विजयाकांक्षा के, बिन्दु सिन्धु बन आए।
ऋ.पृ. 171
निद्रा के वशीभूत श्रम श्लथ मानव का बिम्ब भी निरूपित किया गया है। अत्यधिक श्रम से निद्रा आती है। निद्रा के पश्चात् थका हुआ शरीर पुनः श्रम करने के लिए उन्नत दशा को प्राप्त करता है। 'अंगारकार' की कथा योजना से निद्रा के
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