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करते हुए ऋषभ पारणा के इस दिव्य अवसर पर सामान्य जनता श्रेयांस को साधुवाद देना नहीं भूलती, जो उनकी कृतज्ञता का विशुद्ध ज्ञापन है।
साधु-साधु श्रेयांस! तमस का, नाश किया दे नया प्रकाश। तुम से जग आलोकित होगा, जन-जन में जागा विश्वास।। ऋ.प्र. 135
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8. ईर्ष्या
आचार्य महाप्रज्ञ ने ईर्ष्या भाव से संबंधित बिम्बों का निरूपण न के बराबर किया है। दृष्टि, मुष्टि, सिंहनाद, बाहु तथा यष्टि युद्ध में पूर्णरूपेण पराजित होने के पश्चात् बाहुबाली के पौरूष के प्रति भरत के हृदय में ईर्ष्या की अग्नि सुलगने लगी जिससे प्रेरित हो उचित अनुचित का त्याग कर वे असमय में रक्तरंजित फाग खेलने लगे -
पूर्ण पराजय से जो सुलगी, अंतस्तल में भीषण आग। उससे प्रेरित अग्रज मानो, खेल रहा असमय में फाग।।
ऋ.पृ. 285
यहां भरत के अन्तस्ताल में सुलगती हुई भीषण आग तथा असमय फाग के बिम्ब से उनके ईर्ष्या भावना को व्यक्त किया गया है। उक्त उदाहरण के अलावा ऋषभायण में ईर्ष्या भाव परक बिम्बों का अभाव दिखाई देता है।
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9.
श्रम
श्रम संचारी भाव को परिभाषित करते हुए आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र ने लिखा है – 'मार्ग पर चलने, व्यायाम करने आदि से जहाँ संतोष सहित अनिच्छा अथवा थकावट हो वहाँ श्रम होता है (6) धन कमाने या जीविका के लिए की जाने
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