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तत्काल उपलब्धि से वंचित रखता है
कैसे जाऊँ मैं प्रभुवर की सन्निधि में, कुछ ज्ञात और अज्ञात नियति की विधि में । लघु बांधव को प्रणिपात करूंगा कैसे?, अनुशासन का उल्लंघन भी हो कैसे ? ऋ. पृ. 292
बाहुबली के हृदय में पनप रही अभिमान रूपी लता उनके प्रमाद भाव को ही उत्पन्न करती है। वे 'समता' को सत्य तो मानते है किन्तु 'वंदन' को सामान्य व्यवहार के रूप में स्वीकार करते हैं इसलिए वे उसे अनावश्यक समझते हैं जबकि ऋषियों, मुनियों की वंदना व्यवहार नहीं, व्यक्ति का सहजधर्म है। चूंकि ऋषभ दरबार में मुनि रूप में अनुज भी उपस्थित हैं इसलिए धर्मानुसार उन्हें प्रणाम करना बाहुबली का कर्तव्य है, किन्तु प्रमाद भाव के कारण वे उलझन में ही फंसे रहते है
है वंदन तो व्यवहार सत्य समता है
क्यों पनप रही मन में अभिमान लता है ?
ऋ. पृ. 294 इस प्रकार ऋषभायण में प्रमाद भाव के अन्य उदाहरण भी मिलते हैं ।
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