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..... इस प्रकार कहा जा सकता है कि आचार्य महाप्रज्ञ ने 'ऋषभायण' में
हर्षभाव का चित्रण कुशलतापूर्वक किया है।
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प्रमाद
प्रमाद का शाब्दिक अर्थ है-नशा, गफलत भूलचूक अथवा अंतःकरण की दुर्बलता। भ्रम, भांति, अभिमान आदि के कारण कुछ का कुछ समझना या करना प्रमाद है ।७ अरों के परिवर्तन के साथ जब कल्पवृक्ष युगलों की आवश्यकताओं को पूरा करने में कार्पण्य करने लगे तब उनमें स्वत्व हरण, अतिक्रमण, छीना झपटी का जैसे नशा सा चढ़ गया। यहाँ 'नशा' बिम्ब से युगलों का प्रमाद भाव व्यंजित हुआ है -
स्वत्व-हरण, छीना-झपटी का, अतिक्रमण का वेग बढ़ा। शांति भंग का, मौन–भंग का, सब पर जैसे नशा चढ़ा।।
ऋ.पू. 13
मद से मतवाले हाथी के बिम्ब से युगलों के प्रमाद भाव की अभिव्यक्ति हुई है। जिस प्रकार मदमस्त हाथी अंकुश के नियंत्रण को स्वीकार नहीं करता, उसी प्रकार युगल भी मर्यादाओं का तिरस्कार कर गफलत करने में मशगूल हो गए -
मत्त मद से बन द्विरद ने, व्यर्थ अंकुश को किया है। युगल के संवेग ने गति, वेग आशुग से लिया है।
ऋ.पृ. 25
द्वन्द युद्ध में पराजित भरत के अंतःकरण की दुर्बलता उस समय देखी जा सकती है जब वे सोए हुए सिंह को जगाने के बिम्ब से बाहुबली की प्रबलता स्वीकार करते हैं। यहाँ भरत का पश्चाताप मिश्रित प्रमाद भाव व्यक्त हुआ है -
व्यर्थ जगाया सुप्त सिंह को, व्यर्थ किया रण का आवेश। ऋ.पृ. 280
बाहुबली इस अभिमान के कारण ऋषभदेव की शरण में नहीं जा पाते कि उन्हें अनुजों के समक्ष झुकना होगा, प्रणाम करना होगा। वस्तुतः यह अहंकार मिश्रित उनका प्रमाद भाव ही है जो साधना के मार्ग पर अग्रसर होते हए भी उन्हें
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