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शोषण घृणित है। वर्तमान युग की सच्चाई को बेनकाब करते हुए कवि कह
उठते हैं कि :
अमरबेल का आरोहण कर,
किया वृक्ष का शोष,
वह कैसा प्राणी जो करता,
पर शोषण निज पोष,
कितना हाय जुगुप्सित कर्म लज्जित हो जाती है शर्म
ऋ. पृ. 80.
रूप में प्रतिष्ठिा, ऋषभ
महान् आत्माओं का अवतार सोद्देश्य होता है। भरत का राज्याभिषेक बाहुबली को बहली प्रदेश तथा शेष पुत्रों की राजा के के महान्, त्याग तथा वैराग्य वृत्ति को व्यक्त करती है। राज्य का त्याग, त्याग की पराकाष्ठा । इस चरित्र में आचार्य महाप्रज्ञ समाज को यह संदेश देना चाहते हैं कि एक अवस्था के पश्चात् अपना उत्तराधिकार सामर्थ्यवान पुत्रों को सौंप देना चाहिए, यह सामंजस्य है पारिवारिक सामंजस्य, राजकीय सामंजस्य ।
ऋषभ
का भरत को राजनीति का सम्बोध उनका सत्य और यथार्थ में जिया हुआ संबोध है। एक राजा अथवा राजप्रमुख को कैसा होना चाहिए, उसमें कौन-कौन गुण होना चाहिए ? इसकी विशद विवेचना वर्तमान राजकीय व्यवस्था पर एक सशक्त आक्षेप है । ऋषभ का यह संदेश कि राजा को अहंकार मुक्त जनप्रिय एवं न्यायी होना चाहिए, उसे यह भी देखना चाहिए कि कोई सबल निर्बल को उत्पीड़ित न कर सके। राजा को स्वयं अर्थअल्पित एवं जितेन्द्रिय होना चाहिए । आवश्यकतानुरूप विवेक सम्मत निग्रह और अनुग्रह दोनों नीतियों का जनहित में प्रयोग करना चाहिए । भोगी या विलासी राजा इस धरती और जन के लिए भारस्वरूप होता है :
अजितेन्द्रिय शासक विफल
अंकहीन ज्यो शून्य
संयत शासक प्राप्त कर
होती धरा प्रपुण्य ।
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