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________________ राजा को यह भी देखना चाहिए कि 'राज्य मंडल' से सम्बन्धित सचिव अथवा मंत्री लोभी न हो, जनता के प्रति उनके हृदय में संवेदना और सहानुभूति हों। यदि शासन द्वारा जनता की समस्याओं का समाधान नहीं होता तो वह शासन राज्य के लिए हानिप्रद है। ऋषभ के राजनीति संबोध और आज की राजनीति की तुलना करें तो वह ठीक इसके विपरीत सिद्ध होगी। ऋषभ का संबोध राजतंत्र में जनतंत्रात्मक शासन प्रणाली के विकास का दिव्य संदेश है। छठवाँ सर्ग भोग और योग का अद्भुत आख्यान है। अतिशय भोग, सुख सुविधा से समाज में संघर्ष और कलह का जन्म होता है। भोग की वृत्ति योग मार्ग से ही संयमित हो सकती है। संयम और त्याग योग की प्रथम कड़ी है। भोग और योग का परिणाम निम्नलिखित उद्धरण में देखा जा सकता है। ऋ.पृ.-97. इक्षुरसमय अनासेवित, सरसता सप्राण है, और सेवित विरस बनता मात्र त्वक निष्प्राण है, चेतना जागृत पुरूष वह देखता परिणाम को, । सुप्तमानव पुरूष केवलदेखता है काम को। "ऋषभ दीक्षा" में केश लैंचन की प्रक्रिया बाह्य सौंदर्य के त्याग की प्रक्रिया है। बाह्य सौंदर्य जितना ही संकुचित होता जाता है, आन्तरिक प्रदेश में उतना ही निखार आता जाता है। निम्नलिखित पंक्तियों मे गंभीर संदेश है धर्म, संयम और मुनि का अर्थ पद अज्ञात है। शब्द का संसार सारा अर्थ का अनुजात है। ऋ.पृ.-94. योग एक आंतरिक प्रक्रिया है। 'आत्मा' का दर्शन अथवा उसकी दिव्य अनुभूति, 'चेतना' को उर्ध्वगामी करने से ही हो सकती है। पंतजलि ने भी योग की संपूर्ण व्याख्या की है। चेतना का उर्ध्वगमन 'योग' एवं अधोगमन 'भोग' है। संसार में रहते हुए सांसारिक धारणाओं से मुक्ति योग है। वस्तुतः यह शरीर योग और भोग दोनों का केन्द्र बिन्दु है। इन्द्रियाँ व्यक्ति को भोग की ओर प्रवृत्त करती हैं किन्तु साधक सतत इंद्रिय निग्रह एवं प्राणायाम की क्रिया से सहस्त्रार में स्थित सहस्त्र कमल दलों का स्पर्श कर आत्मानन्द की अनुभूति करने 13]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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