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जनता की दुविधा मिटे, शासन का है ध्येय। दुविधा की यदि वृध्दि हो, वह आमयकर पेय ।।
ऋ.पृ.89
मझधार में फंसी डगमगाती नौका के बिम्ब से भ्रातृ स्नेह के प्रति भरत के मन में उत्पन्न शंकाभाव का बयान निम्नलिखित पंक्तियाँ करती हैं। भरत की सोच में इस परिवर्तन का कारण मंत्री की कुटिल मंत्रणा है
सोच में परिवर्त आया, नर विचित्र स्वभाव है। बंधु के सम्बन्ध की मझ, धार में अब नाव है। ऋ.पृ. 226
संशय के लिए 'कारा' का बिम्ब दुर्बल मानव के परिप्रेक्ष्य में बहुत ही सटीक है। संशय को उगते हुए फूल के बिम्ब से भी निरूपित किया गया है। बाहुबली संशय ग्रस्त भरत को संबोधित करते हुए कहते हैं – जब अहंकार की परस्पर टकराहट होती है तभी धूल धूसरित नेत्रों में संशय के फूल खिलते हैं। जब तक हम इस संशय की कारा से मुक्त नहीं होगें तब तक युद्ध में धन-जन की हानि होती ही रहेगी -
अहं अहं से टकराता तब, उठता गरमी का वातुल धूल-धूसरित नयनों में फिर, उगते हैं संशय के फूल। ऋ.पृ. 269 इस संशय की कारा से कब, होंगे बंधुप्रवर! हम मुक्त ? ऐसे जन-धन का क्षय करना, कैसे कहलाएगा मुक्त । ऋ.पृ. 270
द्वन्द्व युद्ध की घोषणा से, बाहुबली के दृढ़तप तथा भरत के कोमल शरीर से, विजय के प्रति भरत की सेना शंकालु हो उठती है - 'दृढ़' और 'कोमल' स्पर्शित बिम्ब से बाहुबली की शक्ति सम्पन्नता तथा भरत की निर्बलता का आकलन सहज में ही किया जा सकता है -
चिंतित भरतेश्वर की सेना, स्वामी की है कोमल देह। अंग बाहुबली का दृढ़तम है, विजय-वरण में है संदेह।
ऋ.पृ. 272
इस प्रकार आचार्य महाप्रज्ञ ने ऋषभायण में शंका जन्य बिम्बों का सफलतापूर्व अंकन किया है।
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