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... ... आचार्य श्री ने ध्वनि (सिंहनाद) के प्रभाव से अनेक बिम्ब गढ़े हैं, सिंह रथ के भीषण सिंहनाद से भरत की सेना के मानसपटल पर रणक्षेत्र में बाहुबली अथवा इंद्र की उपस्थिति का संदेह परक बिम्ब उभरने लगा, जिससे वे और भी अधिक भयाकुल हो रहा रण क्षेत्र से पलायन करने लगे -
सिंहनाद से हुआ प्रकंपित, भरतेश्वर का सेना-चक्र। किया पलायन योद्धागण ने, कौन ? बाहुबली अथवा शक | ऋ.पृ. 255
दूसरी ओर दिव्य आयुधों से सुसज्जित भरत के सेनापति के सिंहनाद से बाहुबली की सेना भी भयाक्रांत हो जाती है।
दिव्य शस्त्र से सज्जित होकर, सम्मख आया सेनाधीश।
सिंहनाद से किया प्रकंपित, बहलीश्वर सेना का शीश।
ऋ.पृ. 259
सुगति की मृत्यु के पश्चात् भरतपुत्र सूर्ययशा के पराक्रम को अवरोधित करने के लिए बाहुबली सिंहनाद करते हुए युद्ध क्षेत्र में प्रवेश किए। उनके प्रचंड सिंहनाद से प्रकंपित भरत की सेना पलायन करने के लिए विवश हो गयी - ..
स्वयं बाहुबली आए आगे, सिंहनाद का एक निनाद। चक्रीश्वर की सेना कंपित, हुआ पलायन का अनुवाद। ऋ.पृ. 265
बाहुबली की प्रतिस्पर्धा में भरत के सिंहनाद से संपूर्ण दिशाएं व्याप्त हो गयीं, जिससे पृथ्वी, तरूवर एवं गगनचारी भी भय से आक्रान्त हो गए -
भरतेश्वर के सिंहनाद से, दिग् दिगन्त में हुआ निनाद । भूमि कंपित, कंपित तरूवर, अम्बरचारी भी भयभीत । कौन अभयदाता अब होगा? अभय स्वयं है शब्दातीत।
ऋ.पृ. 278
पराजित भरत द्वारा बाहुबली के चक्र प्रक्षेप से धरती पर 'कोलाहल' होने लगा, जिससे देवता और दनुज भी भय से व्याकुल हो गए । इस प्रकार ऋषभायण में ध्वनि परक बिम्बों से भयभाव की यथेष्ट अभिव्यंजना हुई है।
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