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8.
भय -
ऋषभायण में भय भाव के पर्याप्त बिम्ब निरूपित हुए हैं। कल्पवृक्षों द्वारा भोजनपान की व्यवस्था से हाथ खींच लेने पर कुलकर का युगलों के भरण-पोषण से संबंधित भूख का भय सताने लगा। भूख को ताप से अधिक भयंकर कहकर उसके भयावह रूप को बिम्बित किया गया है -
अब क्या होगा? भय से आकुल, कुलकर का सारा परिवार |
भूख-ताप से अधिक भयंकर, हंत! भूख के भय का तार।।
ऋ.पू. 69
तन का सिहर जाना, मन में अनबूझा सा कंपन, जीवन का ठहर जाना आदि अनुभावों का उपयोग भय व्यंजक बिम्ब के रूप में किया गया है। नर शिशु की मृत्यु के पश्चात् जड़वत् सुनन्दा को देखकर उसके माता-पिता के मानस पटल पर अनाम भय का संचार इस प्रकार होने लगा जैसे जीवन की गति ही ठहर गयी हो -
दूर स्थित माँ और पिता का, अनजाने तन सिहर गया। मन में अनबूझा-सा कंपन, जीवन जैसे ठहर गया।
ऋ.पृ. 40
शक्ति की भयावहता का चित्रण आकाश में आच्छादित बादल के बिम्ब से किया गया है। शक्ति सम्पन्न व्यक्ति दुर्बल जन के अस्तित्व को भय के घटाटोप से ढक लेते हैं -
सबल मनुज का दुर्बल जन पर, भय घन बन छा जाता। देवि ! नहीं तुम रह पाती हो, तब ममतामय माता।
ऋ.पृ. 162
काले-काले बादलों की छटा तथा बिजली की चमक से भय भाव को बिम्बायित किया गया है। गिरिजनों के निवेदन से भरत के आक्रमण को विफल करने हेतु देवकृत मेघमुखों की मूसलाधार वृष्टि से भरत की सेना भयाकुल हो काँप सी जाती है -
सहसा श्यामल अंभोधर की, घटा गगन में छाई। मुसल सदृश वर्षा की धारा, कांप उठा सेनानी। आंदोलित सेना का मानस, किसने लिखी कहानी। ऋ.पृ. 175
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