________________
विद्याधर रत्नारि कोप से, ज्वलित हुआ वह दृश्य निहार। पवनवेग सा आया मानो, होगा रण का उपसंहार।
ऋ.पृ. 261
भरतपुत्र शार्दूल और विद्याधर सुगति के द्वारा एक दूसरे पर आक्रमण के फलस्वरूप क्रोधाभिव्यंजक बिम्ब निम्नलिखित पंक्तियों में देखा जा सकता है -
रूद्ध हुआ शार्दूल सुगति से, देखा रवि ने अति ऑटोप। शून्य गगन पर हुआ कोप का, मानो भीषणतम आरोप।। ऋ.पृ. 264
क्रोध और आवेश भाव का उद्घाटन, पक्षियों पर आक्रमण करने वाले 'बाज' पक्षी के बिम्ब से भी किया गया है। क्रोधावेश में शार्दूल सुगति का शिरोच्छेद वैसे ही कर देते हैं जैसे बाज पक्षी झपटकर किसी भी पक्षी का अंत कर देता है
झपटा जैसे बाज विहग पर, किया सुगति के सिर का छेद।
ऋ.पृ. 264 बाहुबली के दण्ड प्रहार की क्रोधाग्नि से प्रज्जवलित भरत का मुखमंडल अति विकराल दिखाई देने लगता है। पराजय की इस अनुभूति से उनकी समग्र चेतना क्रोध से परिपूर्ण हो जाती हैं। यहाँ क्रोधाग्नि से जलना, मुखमंडल की विकरालता, क्रोधाभिव्यंजक है -
तन का पौरूष, बल मानस का, क्रोध अग्नि का ऊर्जा जाल। व्यक्त हुआ भरतेश क्लेश से, मुखमण्डल लगता विकराल।। ऋ.पृ. 283 कोपाविष्ट समग्र चेतना, और पराजय की अनुभूति, ज्योति हुई आच्छन्न भस्म से, नहीं रही प्रत्यक्ष विभूति। ऋ.पृ. 283
'रौद्र मूर्ति' की प्रचंडता के बिम्ब से बाहुबली के क्रोध की अभिव्यक्ति की गई है। पूर्ण पराजय के पश्चात् भरत ने बाहुबली पर जब चक्र से प्रहार किया तब बदले में 'मुस्टिताने' बाहुबली, भरत पर आक्रमण करने के उद्देश्य से इस प्रकार दौड़े जैसे वे रूद्र की साक्षात् प्रतिमा हो -
उठा हाथ, तन गई मुष्टि भी, दौड़ा भरतेश्वर की ओर। रौद्र मूर्ति से लगी टपकने, साध्वस की धारा अति घोर। ऋ.पृ. 287 इस प्रकार कविवर्य ने क्रोध जन्य बिम्बों की योजना सफलता पूर्वक की है।
256