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व्योम मार्ग से पुष्पक विमान द्वारा नमि विनमि का अयोध्या में उतरना वहाँ की जनता के लिए विस्मयकारी है। उस समय धरती पर उतर रहे पुष्पक विमान की आभा का चित्रण बादलों के मध्य कौंध रही विद्यत रेखा के बिम्ब से की गयी है -
यह कौन आ रहा देखो व्योम विहारी? तापस युग ने तब घटना नई निहारी । धरती पर उतरा यान तनुज को देखा, कौंधी धाराधर में बिजली की रेखा।
ऋ.पृ. 124
समवसरण में त्यागी ऋषभ के ठाटबाट को देखकर मरूदेवा के मन में विस्मय के बादल घनीभूत हो जाते हैं -
देखा माँ ने विभु का वैभव, विस्मय का घन सघन हुआ। स्वयं अकिंचन कांचन पीछे, लगता जैसे मगन हुआ।। ऋ.पृ. 154
भरत के दिग्विजय के पश्चात् चक्रवर्ती अभिनन्दन समारोह में बंधु बांधवों की अनुपस्थिति से राज्य सभा में व्याप्त सन्नाटा, मूकता, नीरवता भी विस्मयकारी है
सन्नाटा सा राज्य सभा में, विस्मित लोचन मौन अखण्ड भाषक जन भी हुए अभाषक, नीरवता है दण्ड प्रचंड। ऋ.पृ. 191
बाहुबली की सेना के समक्ष भरत के समान बलवान पुत्र (सूर्ययशा) की उपस्थिति से भी उनकी सेना का विध्वंश विस्मयकारी है -
स्वामीन्! सुत नव तुल्य बली हैं, देख रहे हैं सेना-ध्वंश। अद्भुत कैसे रणभूमि में, पनपा निष्क्रियता का वंश ? ऋ.पृ. 262
युद्ध के दरम्यान बाहुबली के दक्षिण कर में चक्र को विराजित देखकर भरत उसी प्रकार विस्मित हो जाते हैं, जिस प्रकार कृषक अंकुर को गुल्म के रूप में परिवर्तित देखकर विस्मित हो जाता है -
संशय और विकल्प श्रृंखला, एक पलक में हुई प्रलंब। देख रहा है कृषक सविस्मय, अंकुर कैसे क्षण में स्तंब | ऋ.पृ. 286 अस्तु उपर्युक्त संदर्भो में ऋषभायण में विस्मयभाव की अभिव्यक्ति हुयी
है।
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