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________________ 5. विस्मय - अद्भुत रस का स्थायी भाव विस्मय है। विस्मय भाव विचित्र घटना लोकोत्तर वस्तु अथवा लोकोत्तर पुरूष के वर्णन से उत्पन्न होता है। इसमें व्यवहारिकता का अभाव होने के कारण स्पष्ट रूप से बिम्ब ग्रहण करने में व्यवधान उपस्थित होता है, जिससे कवि कल्पना द्वारा विस्मयकारी बिम्बों का निर्माण करता है। ऋषभायण में विस्मय भाव की अभिव्यक्ति तो कई स्थलों पर हुयी है, पर उसमें कुछेक प्रसंग ही बिम्बात्मक हो सके हैं। स्वेद और मैल से विरहित शिशु ऋषभ का स्वर्ण के समान दैदीप्यमान रूप तथा श्वास-प्रश्वास से कमल के समान सुरभि विस्मयकारी है - अद्भुत रूप हिरण्यकांति तनु, स्वेद-मैल का लेश नहीं। आनापान अब्जवत् सुरभित, आकृति पर संक्लेश नहीं। ऋ.पृ. 36 अन्य शिशु के द्वारा शिशु ऋषभ की अंगुलि पकड़ने पर पवन के समान श्वास वेग से उसे दूर फेंक देने में भी विस्मय भाव की अभिव्यक्ति हुई हैं। यहाँ पवन के बिम्ब से श्वास के वेग को दर्शाया गया है - शक्ति-परीक्षण के क्षण में इक, शिशु ने अंगुलि ग्राह्य किया। श्वास पवन ने सिकता-कणवत्, दूर क्षेत्र अवगाह किया। ऋ.पृ. 38 भरत का विस्मय भाव उस समय देखने योग्य है जब ऋषभ के साथ हजारों लोग मुनिमार्ग पर जाने के लिए तत्पर हो जाते हैं। उस समय उनकी आँखे फटी की फटी रह जाती हैं - विस्मय विस्फारित नयन, बोला भरत नरेश। क्या होगा सबके लिए, प्रभु का यह संदेश ? ऋ.पृ. 94 भरत ही नहीं, माँ मरूदेवा, पत्नी सुनन्दा एवं सुमंगला भी ऋषभ के गृह त्याग से आश्चर्यचकित है। आश्चर्य मिश्रित उनकी स्थिरता को 'मूर्ति' के बिम्ब से व्यक्त किया गया है - माता भी मरूदेवा स्तंभित, मौन मूर्ति-सी खड़ी रही। पत्नी द्वय के मानस-कंपन, से अकम्पित हुई मही। 251 ऋ.पृ. 106
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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