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________________ , नेत्र आँसुओं से परिपूर्ण हो जाते हैं, कंठावरोध हो जाता है, वाणी काँपने लगती है। इस दशा में वे स्तम्भ की भांति जड़वत् हो जाते हैं - सजल नेत्र कंपित-सी वाणी, कंठकला अवरूद्ध स्तब्ध हुआ तनु जड़ित स्तम्भ–सा, पल-पल बुद्ध अबुद्ध। ऋ.पृ. 84 आठवें सर्ग में तक्षशिला के रमणीक उद्यान में विराजित पिता का दर्शन न करपाने के कारण बाहुबली के करूण विलाप का चित्रण किया गया है। शोक विह्वल बाहुबली के मनः संताप का बिम्ब निम्न उदाहरणों में देखा जा सकता है - 1. दर्शन के प्यासे सब लोक, बैठे नयन-अधृति को रोक, यह क्या तुमने किया अशोक, क्या तम उगल रहा आलोक? ऋ.पृ. 138 तक्षशिला में हे भगवान! लिया नहीं कुछ भोजनपान। घोर उपेक्षा का यह वृत्त, आखिर हम भी नाथ सचित्त। ऋ.पृ. 139 प्रथम उदाहरण में 'दर्शन की प्यास' 'नयनों की अधीरता' के बिम्ब से शोक भाव का उदघाटन किया गया है। द्वितीय उदाहरण में तक्षशिला में प्रभु का न रूकना, भोजन पान न करना, तथा बाहुबली का करूण विलाप करना, शोक भाव को ही बिम्बित करता है। शोक के लिए सरिता का बिम्ब संवेदना को सजलता प्रदान करता है। ऋषभ की जुदाई के समय जनमानस का करूण विलाप ऐसा लग रहा था, जैसे शोक संतप्त शब्दों की नदी बह चली हो, तथा उनके सजल नेत्रों से संपूर्ण वनस्थली अभिषिक्त हो गयी हो - भावना का उत्स अक्षय, शब्द-सरिता बह चली, सजल नयनों से हुई, अभिषिक्त पूर्ण वनस्थली। ऋ.पृ. 104 'निर्झर' के बिम्ब से भी शोक भाव की अभिव्यक्ति हुयी है। पितृ वियोग से व्यथित भरत करूण रस में इस प्रकार विचरण करने लगते हैं कि उनके स्वर से शोक का झरना प्रवाहित होने लगता है - भरतेश्वर के स्वर में करूणा, रस ने वर निर्झर रूप लिया। ऋ.पृ. 104 नर शिशु की मृत्यु से शोक मग्न सुनन्दा की मनःस्थिति का चित्रण भी 'निर्झर' के बिम्ब से किया गया है। युगलों द्वारा अकेले भटक रही सुनन्दा के बारे 12491
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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