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________________ पुत्र कितना ही ज्ञानी ध्यानी क्यों न हो जाय, माँ कभी भी उसकी चिन्ता से मुक्त नहीं होती। हर वक्त पुत्र की सुख सुविधा का ध्यान उसे लगा रहता है। माँ मरूदेवा भी पुत्र ऋषभ के प्रति चिन्तातुर हो भरत से कहती हैं कि ग्रीष्मऋतु की प्रचंड धूप में धरती और बालू भी तपने लगती है, मार्ग में तपते हुए पत्थरों के टुकड़े होंगे, पदत्राण विहीन मेरा पुत्र तपते हुए ऐसे भीषण मार्गों से गुजरता होगा। यह ६ रती ही उसकी शैय्या और बिछौना होगी, भला वह रात्रिभर कैसे सो पाता होगा? माँ की इस वात्सल्य जन्य व्याकुलता का बिम्ब निम्नलिखित पंक्तियों में मर्त्तमान हो उठा है - पदत्राण नहीं चरणों में, पथ में होगे प्रस्तर खण्ड। तपती धरती, तपती बालू, होगा रवि का ताप प्रचण्ड। भूमि शैय्या, वही बिछौना, नींद कहाँ से आएगी ? रात्रि-जागरण करता होगा, स्मृति विस्मृति बन जाएगी। ऋ.पृ. 148–149 पुत्र वियोग की वेदना माँ के लिए उस समय और असहनीय हो जाती है, जब सक्षम हो जाने पर पुत्र माँ को भूल कर अन्यत्र बसेरा कर लेता है। पुत्र की इस निष्ठुरता का चित्रण 'हंस' के उस नवोदित 'शिशु' से किया गया है, जो नवीन पंख उगते ही अपनी माँ का त्याग कर अन्यत्र उड़ जाते हैं। पुत्र ऋषभ भी हंस-शिशु की भांति समर्थ होने पर माँ का पालन पोषण विस्मृत कर मुनिमार्ग पर चल दिए। पुत्र के प्रति माँ की यह उलाहना उसके हृदय की संपूर्ण पीड़ा को खोलकर रख देती है - माता की आंखों में आंसू, पुत्र निठुर हो जाते हैं। विस्मृत माँ का पोष हंस शिशु, पंख उगे उड़ जाते हैं। ऋ.पृ. 149 कवि ने बछड़े के पीछे चलने वाली 'माता' के बिम्ब से माता के वात्सल्य भाव को व्यक्त किया है। जीवन के प्रारम्भिक काल में माँ ही एक मात्र त्राता है, जो शिशु की सम्पूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति कर उसके क्लेशों का हरण करती है - माँ बछड़े के पीछे चलती, माता केवल माता है। नवजीवन के आदिकाल में एक मात्र वह त्राता है। ऋ.पृ. 149 पौत्र के प्रति प्रमाता का वात्सल्य भाव पुत्र की तुलना में कम नहीं अपितु [247]
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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