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________________ की आत्मानुभूति तथा भरत बाहुबली के वैराग्यजन्य प्रसंगों में सहजता से देखा जा सकता है। I आत्म-साधना में षट चक्रवेध का विशेष महत्व है । यौगिक क्रिया के द्वारा 'अनहद नाद' की स्थिति में पहुँच जाने पर कर्ण कुहरों को बंद कर लेने पर भी सब कुछ सुनाई देता है। मुनि दीक्षा के अवसर पर योग साधना में लीन ऋषभ 'अनहद नाद' की स्थिति में पहुँच जाते हैं। उनकी यह साधनात्मक अवस्था साधना रूपी 'तैल' से परिपूर्ण, ज्ञान रूपी बाती से प्रज्वलित 'दीपक' केबिम्ब से प्रस्तुत की गयी है मौन वाणी, आँख ने ही, कथ्य अविकल कह दिया । स्नेह से अभिषिक्त बाती, जस उठा 'अनहद' दिया । ऋ. पृ. 94 षट्चक्र बेध के बाद सप्तम चक्र सहस्त्रार में पहुँचने पर साधक सहस्त्र कमल दल का स्पर्श कर आत्मा का साक्षात्कार करता है। वहाँ केवल प्रकाश ही प्रकाश दिखाई देता है । यहाँ ऋषभ की आत्मा रूपी वेदी पर स्वयं प्रकाशित ज्ञानालोक के लिए अविचल जलते हुए 'दीपक' का बिम्ब निर्मित किया गया है, जिससे साधना की पूर्णावस्था व निर्वेद भाव की अभिव्यक्ति होती है चेतना की विमलता ने, कमल दल को छू लिया । आत्मवर्चस् - वेदिका पर, जल उठा अविचल दिया । । ऋ. पृ. 102 महासागर में निमग्न 'मीन' के बिम्ब से भी निर्वेद भाव का अंकन किया गया है । ऋषभ निर्गुण आत्मानन्द में क्षण प्रतिक्षण उसी प्रकार लीन हो जाते हैं जिस प्रकार महासागर के अगाध जल में 'मीन' निमग्न हो जाती है निर्गुण आत्मानन्द में हुए प्रतिक्षण लीन । जैसे सलिल निमग्न हो, महासिन्धु का मीन । - ऋ. पृ. 108 आत्मा से परमात्मा परमात्मा भिन्न नहीं है । आत्मा में ही परमात्मा का निवास है किन्तु इसे कोई निर्गुण साधक ही जान सकता है। बाह्य जगत का ज्ञान विस्मृत हुए बिना अन्तर्जगत् के कपाट नहीं खुल सकते। साधनात्मक अवस्था में ऋषभ आत्मा रूपी मंदिर में इतने लीन हो जाते हैं कि उन्हें परमात्मा के अवतरण साक्षात् अनुभूति होने लगती है —
SR No.009387
Book TitleRushabhayan me Bimb Yojna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilanand Nahar
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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